रामचन्द्रिका सटीक । कि फूलो अशोक सशोकसमूरो । के चित्रसारी चढे कि चिता तन चदन चित्र कि पावकपूरो॥ लोकमें लोक बडो अपलोक सुकेशवदास जो होऊ सो होऊ। विभनके कुलको भृगुनन्दन सूरजके कुल शूर न कोऊ ३४ ॥ पत्यावरि शिखरनि को भेद है खीर व सरस्वती उतार्थः हे राम! तिहारे कठ को कहे शब्द को अर्थ मधुर वचन पानि को सो कुठार ति नहीं पियो पानकस्यो चाहत है अर्थ सुन्यो चाहत है "को गले सन्निधाने धानौ मदनपादपे इति मेदिनी"३२ जिन बामणनकी अनुग्रह कपा सषको वृद्धि करत है तिनको निग्रह दड हमारे चित्त में कैसे परै कड़े पावै औ जितके शीश में जग अक्षत धरत है अर्थ पूजन करत है तिनको तन सक्षत कहे खद्रित को करै या जनायो प्रामण अवध्य हैं तासो तुमको नहीं मारत ३३-चहै अशोक सुख चहै शोक दुःख फूलो कहे होइ लोक यश अपलोक अयश ३४॥ परशुराम-विशेषकछद ॥ हाथ धरे हथियार सबै तुम शो- भत हो। मारनहारहि देखि कहा मन क्षोभत हो । क्षत्रिय के कुल है किमि बैनन दीन रची । कोरि करो उपचार न कैसेहु मीच बचौ ३५ लक्ष्मण ॥ क्षत्रिय हे गुरु लोगन के प्रतिपाल करै । भूलिहु तो तिनके गुण औगुण जी न धरै तो हमको गुरु दोष नहीं अब एकस्ती। जो अपनी जननी तुमही सुखपाइ हती ३६॥ लक्ष्मण औ रामचन्द्र के नम्र वचन सुनिकै भययुक्त जानि परशुराम कयो कि मारनहार जो मैं हू ताको देखिकै कहा क्षोभत डरात हो सर- स्वती उतार्थ, सबै कहे चारो भाई तुम हायन में हथियार धरे ऐसे शोभत हो कि मारनहार जे यमराज हैं तिनहुँन को देखिकै कहा क्षोभत इरात हो अर्थ तुम यमराजहू को नहीं रात हो औ क्षत्रियके कुल में है के किमि कहे काहे दीनबैन हमसों न रचो ब्राह्मण, सों क्षत्रिय को आधीन रहिवाई उचित धर्म है पडू भयौँ तुम दीन वचन नहीं कहत काहे से
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