रामचन्द्रिका सटीक। उचित है तिनके निकट रहि सहायता करि क्षप्रियवर्ण तोको रक्षणीय है ३७ सची कहे करी ३८॥ राम-दोहा ॥ भृगुकुल कमल दिनेश सुनि जीति सकल संसार ॥ क्योंचलिहै इन शिशुनपय डारत हो यशभार ३६ परशुराम-सोरठा ॥ राम सबधु सँभारि छोडतहाँ शर प्राण हर ॥ देहु हथ्यारन डारि हाथसमेति न वेगिदै ४० राम- पद्धटिकाचंद ॥ सुनि सकललोकगुरु जामदग्नि । तप विशिख अशेषनकी जो अग्नि ॥ सब विशिखांडि सहिहाँ अखंड । हरधनुष कखो जिन खड खड ४१ परशुराम- सवैया। बाण हमारेनके तनत्राण विचारि विचारि विरंचि करे हैं।गोकुल बाह्मण नारिनपुंसक जे जगदीन सुभावभरे हैं। राम कहा करिहौ तिनको तुम बालक देव प्रदेव डरेहैं। गाधिकेनंद तिहारे गुरू जिनते ऋषि वेष किये उबरे, ४२ ॥ सकल ससार को जीतिकै जो यश एकत्र कखों है सो इनसों लरिकै हारिकै ता यशको बोझ इन बालनपै डारवहौ इनसे कैसे चलिहै इनसों लरिहौ सौ हारि जैहौ इति भाषार्थः ३६ रामचन्द्र के सतर्क वचन सुनि परशुराम कोपकरि बोले सो अर्थ खुलो है सरस्वती उतार्थ हे हर महादेव ! इनके शरकारकै मैं प्राण छोड़त हौं अर्थ ये बाण सों मेरेमाण हलोचाहत (हैं तासो बधु सहित जो कोपयुत रामचन्द्र हैं विन को तुम सँभारि कहे संभारौ ये अब तुम्हारेई संभारन लायक हैं जासों ये हायनसों समेतिन कहे सवन हथ्यारनको डारिदेहि जपतक ये हाथ में हथ्यार धरे रहि हैं तबतक हमारे भय बन्यो है तासों तुम इनको कोप शांतफरि हध्यार उत्त- रायो आगे महादेव आयषेऊ भये हैं ४० तपके जे अशेष विशिख धाण है, विशिख पद वे शाप जानौ तिनकी अग्नि औ और सा पाणनको बोडौं ने अखड कहे निर्विन सहिहौं अर्थ हमारे ऊपर शापो वाण दुवौ चलानी हम सहि है ४१ सरस्वती उतार्थ हे राम ! तिन वाणन को तुम
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