७४ रामचन्द्रिका सटीक । कि कोरि उपचार यत्न करौ काहे करै अर्थ ब्रह्मादिह की शरणमें जाइ औ तुम मीचको मारौ चाही तो कैसेहू न बचो कहे पर्चे ३५ जो तुमहीं अपनी जननी माता को सुख पाइकै मारयो तुमको कुछ गुरुदोष ना भयो तो तुम्हारे मारे सो हमहूं को रत्तिहू भरि गुरुदोष नहीं है जननी को वध | जनाइ या जनायो कि तुम ऐसेई स्त्रीवधादि पराक्रम करची है अथवा गुरुदोषी जनायो ३६ ॥ परशुराम-विजयछंद॥ लक्ष्मणके पुरिखान कियो पुरु पारथ सोन कहो परई । वेष बनाइ कियो वनितान को देखत केशव ह्योहरई ॥ फरकुठार निहारि तजे फल ताकी यह जो हियो जरई । आजु ते केवल तोको महाधिक क्ष- बिन पै जो दया करई ३७ गीतिकाचंद ॥ तब एकविंशति बेर में बिन क्षत्रकी पृथवीरची । बहु कुडै शोणितसों भरे पितृतर्पणादि क्रिया सची ॥ उबरेजोक्षत्रियक्षुद्र भूतल शोधि शोधि सहारिहौं । अव बाल वृद्ध न ज्यान बांडहुँ धर्मनिर्दय पारिहौं ३८ ॥ सरस्वती उतार्थः लक्ष्मण के पुरिखान पड़ेन जो पुरुषार्थ फियो है सो कह्यो नहीं परत कहा पुरुषारथ करयो जिन वनितन को वेष बनायो अर्थ पनिता रच्यो गौतम की स्त्रीको पाथर सों स्त्री बनायो जाको देखत हियो हरिजात है अर्थ प्रतिसुदरी बनायो तो या जनायो सृष्टि करिबेको समर्थ हैं याही विधि दशरथ भगीरथादि के कृत गंगा ल्याइयो आदि जानौ सो हे वर कुठार ! तिनको निहारिक तजै कहे छोड़े अर्थ इनके समीप ते अन्यत्र जाइ सौ ताको इनके वियोगको यह फल है जो हृदय परई कहे जरत है अर्थ प्रतिसुंदर रूप जे ये हैं तिनके वियोग सा हृदय जरत है इनके योग को यहै फल है नासो जो तेरो इनको वियोग हैहै तो जैसे हियो गरि है सो पान सेवन कहे एक तोको महामधिक फहे महाउत्तम है जो दिन के ऊपर दया कर धानुनक भत्रिन को बध परयो ना वर्णन में ये ऐसे रूप गुण क्लादि पूरित भये सासा अन भनियवर्णकी रमा करिषो नोदि
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