७६ रामचन्द्रिका सटीक। दोहा ॥ कलभनलीने कोटपर खेलत शिशु चहुँ ओर ॥ अमल कमल ऊपर मनो चंचरीक चित चोर ४ कलहंस छद ॥पुर पाठ पाठ दरबार विराजें। युतबाठ पाठ सैना- पति राजैः ॥ रहैं चारि चारि घटिका परिमानें । घरजाहिं और जब पावत जानें ५॥ मगलचार बंदनवारादि १।२।३ कलभ छोटे हाथी कमल सहश को तासों पाख्य कोट जानो ताको भेद भागे कहिहैं ४ पुर कहे अग्रभाग जे पुरी के पाउडै तिनमें पाठ दरबार कहे सभा विराजत हैं अर्थ आठ प्रकारके कोट होत हैं यथा नरंपसौ " अतिदुर्ग कालवर्म चक्रावर्त हिंधुरम् । सदावर्त च पाख्यं यक्षभेद च शावरम् ॥ कोटचक्र प्रवक्ष्यामि विशेषादष्टधा च सत्" सो, जैसे एक ओर पद्माख्यकोद देख्यो तैसे पुरीके पाठहू ओर शहरपनाह में पाठहू प्रकारके कोट बने हैं तिनमें राजा के पाठ मनी हैं। यथा पाल्मीकीये 'धृष्टिर्जयन्तो विजया सिद्धार्योत्यर्थसाधकः । अशोकी मन्त्रपालश्च सुमन्त्रश्चाष्टमो महान" ते मनी तिन कोटन में पाठह दिशन के प्रधान संग सभा करत हैं अर्थ तिन में पैठि आठहू दिशन को मामिलो करत हैं अथवा दरवार कहे मुख्यद्वार पुरद्वार इति अर्थ पुरीके शहरपनाह में भारह दिशनमें भारद्वार बने हैं। यथाकविमि- यायां "नीके के केवार दैहौ द्वार द्वार दरवार केशवदास भास पास शूर जौन छावैगो" ५॥ दोहा॥ पाठौदिशिके शीलगुण भाषा वेष विचार॥ वाहन वसन विलोकिये केशव एकहि बार ६ कुसुम विचित्रा छंद ॥ अतिशुभवीथी रज परिहरे। चदनलीपी पुष्पनि- घरे॥ दुहुँदिशि दीसत सुवरणमये । कलशविराजत मणि- मय नये ७ तामरस छंद ॥ घर घर घंटन के रव बाजें। बिच बिच शंख जु झालरि साजै ॥ पटह पखाउज आउज सोहैं । मिलि सहनाइन सौ मनमोहैं ८ हीरकचंद : सुंदरि
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