पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । सब सुंदर प्रतिमदिर पर यों बनी । मोहनगिरि श्रृंगन पर मानहुँ महिमोहनी ॥ भूषणगण भूषिततन भूरि चितन चोरहीं। देखति जनु रेखति तनु बाण नयन कोरहीं ६ सुं. दरीबद । शकरशैल चढ़ी मनमोहति । सिद्धन की तनया जनु सोहति॥ पद्मनऊपर पद्मिनि मानहु । रूपन ऊपर दीपति F जानहु १०॥ ६ यामें चौकीदार सेनापतिन की रीति कहत हैं कि भाग. दिशिके चौकीदारन के शील कहे स्वभाव गुण शूरता आदि औ भाषा कहे बोली चौकी समयकी चौकीदारन की बोली मिन है भो पेष कहे देहकी श्यता स्थूलता आदि भी विचार औ वाहन गज भरव' रथादि वसन स्याम, श्वेत पीतादि एकहिबार कहे एकही तरह विलोकियत है जा वेषसों जा पहरकी चौकी जैसे सेनापति की है तैसी पाठहू औरकी है इतिभावार्थः अयया जा पुरी में आग दिशिक शील प्रादि एकही बार एकही समय विलोकियत है यासों या जनायो कि आग दिशिके राजा जापुर में हाजिर रहत हैं औ भाग दिशिक माणी जापुर में बसत हैं वीथी गली 21 मतिमदिर कहे आपने आपने मदिरनपर बरातको कौतुक देखिये को सुदरी कहे बी चढ़ी हैं मोहनारि सरश काहे अतिसुंदर मदिर जनायो जब देखती हैं तब बाणसम जे नयनकोर है तिनसों मानों तनको देखती है कहे वेधती हैं । सिद्धदेव योनि विशेष हैं पधिनि कमलिनीरूप सौंदर्य कैलास श्री यम औ रूपसम गेह है सिद्धतनया कमलिनी दीपतिसम् स्त्री हैं १० ॥ कीरति श्रीजयसंयुत्त सोहति । श्रीपतिमदिरको मन मोहति ॥ ऊपर मेरु मनो मनरोचन । स्वर्णलता जन रोचति लोचन ११ विशेषकचंद ॥ एक लिये पर दर्पण चन्दन चित्र करे। मोहनि है मन मानहु चॉदनि चन्दधरे ॥ नैन विशालनि अबरलालनि ज्योति जगी । मानहु रागनि 4 ।