पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/८६

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८२ . $ रामचन्द्रिका सटीक । के गेह १६ त्रिभंगीछंद || बाजे बहुबाजे तारनि साजे सुनि सुरलाजै दुख भाजें।नाचे नवनारी सुमन शृंगारी गति मनुहारी सुख साजै। बीणानि बजावेंगीतनि गावें मुनिन रिझावै मन भावें। भूषण पट दीजै सब रसभीजे देखत जीजै छवि छावें २०सोरठा॥ रघुपति पूरणचंददेखि देखिसब सुखमदें ॥ दिनदूने आनंद तादिनते तेहिपुरब २१ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायोरामस्यायोध्या- नगरप्रवेशोनामाष्टमः प्रकाशः॥८॥ ताही क्षण गजपर चढ़े राम ऐसे शोभित भये तमपुंज मानों भानु सूर्य | को गहि लियो अथवा तमपुंजही को मानों भानु गहि लियो जानो लोभहि तरेफरे दान भासत है तरे पदको संबंध याहू में है औ कहूं यह पाठ है जनुराजत काम शृंगार तरे सौ भृगार तरे जाके ऐसो मानों काम राजतहै | भानु श्री चन्द्रमा औ शोभा औदान सम रामचन्द्र हैं तमपुज औ अजन गिरि श्री मन्मथ औ लोभ सम गण है १५।१६।१७।१८।१६ तार कहे उच्च स्वर को साजत हैं "तारो निर्मलमौक्तिके मुक्ता शुद्धावुचनादेशति प्राभि- | धानचिन्तामणि" रस कहे प्रेम में भीजे जे सब पुरवासी हैं तिन, करिक भूपण पट दीजै कहे दीजियत हैं अर्थ मेम सों युक्त सब भूषण पट दान करत हैं २०१२१॥ इति श्रीमनगजमानजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायाराममक्किमकाशिकापामग्रमा प्रकाशा॥८॥ दोहा।। यह प्रकाश नवमै कथा रामगवन वन जानि ॥ जनकनदिनी सुरत वर्णन रूप बखानि १ रामचन्द्र लक्ष्मणसहित घर राखे दशरस्थ ।। विदा कियो ननसार को सँग शत्रुघ्न भरस्थ २ तोटकछः॥ दशरथ महामन मोदरये। तिन बोलि पशिष्ठहिँ मत्र लये ॥ दिन एक कहोशुमशोभ