पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/८७

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रामचन्द्रिका सटीक । रयो। हम चाहत रामहिाराज दयो ३ यह बात'भरत्यकि मात सुनी। पठऊ वन रामहि बुद्धि गुनी । तेहि मदिर में नृपसों बिनयो। बरु देहु हतो हमको जो दयो ४ नृप बात कही हसि हेरि हियो। वर मांगु सुलोचनि मैं जो दियो। केकयी ।। नृपता सुविशेषि भरत्थ लहैं । वर वन चौदह राम रहैं ५ ॥ ११२ शोभरयो राजा को विशेषण है ३।४।५॥ पद्धटिकाछंद । यह बात लगी उर वज्रतूल। हिय फाट्यो ज्यों जीरण दुकूल || उठि चले विपिन कहँ सुनत राम । तजि तात माततिय बन्धु धाम ६ हरिलीलाचंद ॥ छूटे सबै सबनिके सुख क्षुत्पिपास । विद्वदिनोद गुण गीतविधान वास ।। ब्रह्मादि अन्त्यजन अंत अनत लोग । भूले अशेष सविशेषनि राग भोग मौक्तिकदामछंद ॥ गये तहे राम जहां निजमात । कही यह बात कि हौं वनजात ॥ कळू जनि जो दुख पावहु माह । सो देहु अशीष मिलौं फिरि आइ ८ कौशल्या ॥ रहौ चुपकै सुत क्यों वन जाहु । न देखि सकें तिनके उरदाहु ॥ लगी अब बाप तुम्हारेहि वाइ । करें उलटी विधि क्यों कहि जाइ राम-ब्रह्मरूपकछद।।अनदेइ सीख देह राखि लेह प्राण जात । राज बाप मोलले करें जो दीह पोषि गात ॥ दासहोइ पुत्रहोइ शिष्यहोइ कोई माइ । शासनान मानई तौ कोटि जन्म नर्क जाइ १०॥ जीर्ण कई पुरानी तजि चले पद इहां मानसिक त्याग जानो ६ क्षुत् कहे या विद्वद्विनोद कहे शास्त्रार्थ गुणशास्त्र वियादि गीत विधान गाइषो कास घर अथवा वस्त्र अमहियादि दै औ अंत्यज जे चांडाल हैं तिन पर्यंत जे अनंत लोग हैं तिनको अशेष राग मेम श्री भोग सविशेषणं भूले अर्थ