पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०९१

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ते। १०९३ रामचरित मानस । हरिगीतिका-छन्द। नम दुन्दुभी बाजहिं बिपुल, गन्धर्व किन्नर गावहीं । नाचहि अपछरा-वृन्द परमानन्द सुर मुनि पावहीं॥ मरतादि अनुज विभीषनाङ्गद, हनुमदादि समेत गहे छत्रचामरव्यजन धनु असि, चर्म सक्ति बिराजते ॥५॥ आकाश में असंख्य नगारे बजते हैं, गन्धर्व और किन्नर गान करते हैं । अप्सराये' नाचती हैं, देवता और मुनि परमानन्द को प्राप्त हैं । लधुबन्धु भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन तथा विभीषण, अङ्गद, हनूमान आदिक (सुग्रीव, दधिमुख, जाम्पवान, सुपेण, कुमुद, नील, नल, गवाक्ष, पनस, गन्धमादन) वे पार्षदगण छत्र चवर, पखा, धनुष, तलवार, ढाल और घरका के सहित विराजमान हैं ॥५॥ भरत आदि के जिस कम ले नाम लिये उसी क्रम से छत्र आदि गिनाये । यह 'यथासंख्य अंलंकार' है । अगस्तसंहिता में रामचन्द्रजी की सेवा के सोलह पार्षद गिनाये हैं। उनके नाम ये हैं--(१) भरत । (२) लक्षमण । (३) शत्रुहन । (४) विभीषण । (५) अङ्गद । (६) हनूमान (७) सुग्रीव । () दधिमुख । (8) जाम्मवान । (१०) सुषेण । (२१) कुमुद । (१२) नोल । (१३) नल । (१४) गवाक्ष । (१५) पनस । (१६) गन्धमादन। श्री सहित दिनकर-बंस-भूषन, काम बहु छबि सोहई। नव अम्बुधर बर गात अम्बर, पीत मुनि मन मोहई ॥ मुकुटाङ्गदादि बिचित्र भूषन, अङ्ग अङ्कन्हि प्रति सजे । अल्माज नयन बिसाल उर भुज, धन्य नर निरखन्त जे ॥६॥ सूर्यकुल के भूषण रामचन्द्रजी सीताजी के सहित अनेक समव की छवि युक्त सेाहते हैं। नवीन मेघ के समान सुम्वर शरीर और पीला वस्त्र मुनियों मन को मोहित करता है। मुकुट, विजायउ आदि विलक्षण आभूषण प्रत्येक श्री में है। कमल के समान नेत्र, पिशाल छाती और भुजाओं को जिन्हों ने देखा वेधन्य हैं ॥६॥ दो०-वह. सोमा समाज सुख, कहत खगेस। बरनइ सादर सेष स्रुति, सो रस : मान महेस ॥ कागभुशुण्डजी कहते हैं-हे पतिराज ! वह शोभा, समाज और सुख कहते नहीं बनता है। सरस्वती, शेष और वेद वर्णन करते हैं कि उस आनन्द को दिलजी जानते हैं। । }