पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सप्तम सोपान, उत्तरकाण्ड । १०५७ सुनहिँ सकल मति बिमल भराला । बसहि निरन्तर जो तेहि ताला ॥ जब मैं जाइ सा कौतुक देखा । उर उपजा आनन्द बिशेखा ॥५॥ सम्पूर्ण निर्मल बुद्धिघाले हंस जो उस सरोवर मैं सदा रहते हैं, वे परिकथा सुनते हैं। अब मैं ने जा कर पा कुतूहल : तमाशा ) देखो, तय हदय में बड़ा श्रानन्द उत्पन हुआ ॥ ५ ॥ दो-तब कछु काल मराल तनु, धरि तह कीन्ह निवास । सादर सुनि रघुपति गुन, पुनि आयउँ कैला ॥३७॥ तब हंस का शरीर धारण कर मैं ने कुछ समय तक वहाँ निवास किया। सादर के साथ रघुनाथजी के यश को सुन कर फिर मैं फैलास को लौट आया ॥ ७ ॥ हंस का शरीर इसलिये धारण किया पक्षी-समाज में देव मूर्चि येमेल होगी और यहि कागभुशुण्ड मुझे पहचान लेगा तो मेरे सामने कथा कहने में कदाचित उसकोच ही चौ-गिरिजा कहउँ सो सम्म इतिहासा। मैं जेहि समय गय लग पाला॥ अय सेो कथा सुनहु जेहि हेतू । गयउ काग पहिं खग-कुल केतू ॥१॥ शिवजी कहते है-हे पार्थतामैं जिस समय उस पक्षी के पास गया था, वह सब इतिहास वर्णन किया । पर यह कथा सुनो जिस कारण पती-कुल के पतासा गरुड़ काग. भुशुण्ड के पास गये थे ॥१॥ जब रघुनाथ कीन्ह रन क्रीड़ा । समुझत चरित होत माहि नोड़ा। इन्द्रजीत कर आपु बँधायो । तब नारद मुनि गरुड़ पठायो ॥२॥ जय रघुनाथजी ने युद्ध में खेल किया था, उस चरित्र को समझा कर मुझे लज्जा होती है। वेशाप से मेघनाद के हाथ में बंधुभा हो गये, तप नारद मुनि ने गरम को भेजा ॥२॥ बन्धन काटि गयड उरगादा । उपजा हदय प्रचंड निषादा । प्रबन्धन समुझत बहु भाँती । करत विचार उरग-आराती ॥३॥ बन्धन काट कर गाड़ चले गये, उनके हृदय में भयानक खेद उत्पन्न हुआ 1 प्रभु रामचन्द्रजी का बाँधा जाना बहुत तरह समझाते हुए गाहजी विचार करते हैं ॥ ३॥ व्यापक ब्रह्म बिरज बागोसा । माया मोह पार परमोसा॥ सो अवतार सुनेउँ जग माहीं । देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं ॥४॥ व्यापक, पानमा निर्मा, वाणी के स्वामी, माया और माह से परे परमेश्वर ! उनका संसार में जन्म लेना सुना, पर वह महत्व कुछ नहीं देखा ॥ ४ ॥ दो०-भवबन्धन तें छूटहि, नर जपि जाकर नाम । निसाचर बाँधेउ, नागपास सेइ राम ॥५॥ जिनका नाम जप कर मनुष्य संसार-बन्धन से छूट जाते हैं, उन्ही रामचन्द्रजी को एक छोटे से राक्षस ने नागपाश से बाँध लिया ॥ ५ ॥ खर्य