पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२३०

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मानस-पिङ्गल। कारडों में इसकी संख्या ५ है । जिस तरह दोहा के चरणों को उमट कर पढ़ने से सो ठा बन जाता है, उसी प्रकार सोरठा को उलटने से दोहा होता है। नीचे का हदाहरण देखो। उदाहरण - राम तरूप तुम्हार, वचन अगोचर बुद्धि पर । अविगत अकथ अपार, नेति नेति नित निगम कह ॥१॥ इसी सोरठा को उलट कर दोहा । वचन अगोचर बुद्धि पर, राम सरूप तुम्हार । नेति नेति नित निगम कह, अविगत अकथ अपार ॥ इसी प्रकार सभी सोरठा और दोहा जानना चाहिये। (6) हरिगीतिका-छन्द के लक्षण । हरिगीतिका छन्द के चारों परण २८-२८ मा के होते हैं और १६-१२ मात्रा पर प्रत्येक चरणों में विश्राम रहता है तथा चरणान्त मै लघु-गुरु वर्ण भाते हैं। रामचरितमानस में कहीं कहीं इस छन्द में १४-१४ मानाओं पर विराम है। रामचरितमानस के सातों काण्डों में इसकी संख्या १४१ है। उदाहरणा अनुरूप बर दुलहिन परसपर, लखि सकुचि हियहरपही। सब मुदित सुन्दरता सराहहिं , सुमन सुर-गन बरषहीं। सुन्दरी सुन्दर बरन्ह सह सब, एक मंडप राजहीं। जनु जीव उर चारिउ अवस्था, बिभुन्ह सहित बिराजहीं ॥१॥ (e) त्रिमझी-छन्द के लक्षण। विभी-छन्द चारोंचरण ३२-३२ मात्रा के होते हैं और १००८-२-६ मात्राओं पर विश्राम रहता है वथा चरणात को अक्षर गुरु होता है। इस छन्द के किसी भी विराम के भीतर जगण न आना चाहिये। यह केवल बालकाण्ड में ५ चन्द भाया है। उदाहरण। वेद कहै। ब्रह्माण्ड निकाया. निर्मित माया, रोम रोम प्रति, मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर-मति. थिर न रहे। उपजा जब ज्ञाना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत विधि, कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत, मेम लहै ॥१॥ इस छन्द को वापैया के नाम से लोग रामचरितमानस में लिखते आते हैं, परन्तु यह चषपैयां नही त्रिभनी-छन्द है।