पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मानस-पिङ्गल । G उदाहरण जय राम रमारमनं समन । भव-ताप-भयाकुल पाहि जनं ॥ अवधेस रमेस दिनेस विभा । सरनागतमागत पाहि प्रभो ॥१॥ (४) नगस्वरूपिणी वृत्त के लक्षण । नगस्वरूपिणी-वृत्त के चायें घरण पाठ पाठ अक्षर के होते हैं । इसके प्रत्येक चरणों में दूसरा, चौथा, छुवाँ और पाठवाँ वर्ण गुरु होता है। इसे प्रमाणिका भी कहते हैं । अरण्य- काण्ड में धारह और उत्तरकाण्ड में एक कुल १३ वृत्त रामचरितमानस में इसके आये हैं। उदाहरण। विनिश्चतं वदामि ते, न अन्यथा वचांसि मे । हरि नरा भजन्ति जे, तिदुस्तरं तरन्ति ते॥१॥ (५) भुजङ्गप्रयात-वृत के लक्षण। भुजङ्गप्रयात वृत्त के चारों चरण पारह बारह अक्षर के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में चार यगण अर्थात् पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ अधार लघु रहता है। इसके आठ वृक्ष केवल उत्तर काण्ड में आये हैं। उदाहरण । नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभु व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम्। निज निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाश बासं भजेहम् ॥१॥ (६) मालिनी वृत्त के लक्षण। मालिनी वृत्त के चारों चरण पन्द्रह पन्द्रह अक्षर के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में यो जगण, एक मगण और दो यगण पाते हैं। इसे मञ्चमालिनी भी कहते हैं। मानस में केवल एक वृत्त यह आया है, वही नीचे उदाहरण में दिखाया जाता है। उदाहरण। अतुलित बल धा स्वर्ण शैलाभदेह, दनुजवनकृशानु' ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपति बरदूतं वातजातं नमामि ॥१॥ (७) रथोडता-वृत्त के लक्षण । रथोद्धता-वृत्त के चारों चरण ग्यारह ग्यारह अक्षर के होते हैं । इसके प्रत्येक चरणों में गण, नगण, रगण और अन्त में लघु गुरु वर्ण आते हैं । इसके यो वृत्त केवल उत्तरकाण्ड में आये हैं, उन्ही में से एक नीचे उदाहरण में दिया जाता है। उदाहरण कोशलेन्द्रपदकञ्चमञ्जुलौ, कामलावजमहेश वन्दितौ। जानकी कर भरोज लालितो, चिन्तकस्य मन भृङ्ग सङ्गिनी ॥१॥