पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१३८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । देश-चिदानन्द सुख-धाम सिब, बिगत मोह-मद-काम । बिचरहिँ महि धरि हृदय हरि, सकल-लोक-अभिराम ॥७॥ चैतन्य और आनन्दमयं सुख के धाम शिवजी मोह, मद भार काम से रहित सम्पूर्ण लोकों के मानन्द देनेवाले भगवान को हदय में धर कर पृथ्वी पर विचरण करते हैं ॥५॥ चौ०-कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहि ज्ञाना । कतहुँ राम गुन करहिं बखाना ॥ जदपि अकाम तदपि अगवाना । भगत-बिरह-दुख दुखित-सुजाना॥१॥ कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश करते हैं, कहीं रामचन्द्रजी के गुणों का वर्णन करते हैं। यद्यपि सुजान भगवान् शिवजी निष्काम है, तो भी भक्त (सती) के वियोग से उत्पन्न दुःख से दुखी हैं ॥१॥ एहि विधि गयउ काल बहु बीती । नित नइ होइ राम-पद-प्रीती ॥ नेम प्रेम सङ्कर कर देखा । अबिचल हृदय भगति के रेखा ॥२ इसी तरह बहुत समय बीत गया। रामचन्द्रजी के चरणों में नित्य नवीन प्रीति होती है। शङ्करजी का नेम प्रेम और उनके हृदय में अटल भक्ति की लकीर देख कर ॥२॥ प्रगटे राम कृतज्ञ कृपाला । रूप-सील-निधि तेज बिसाला । बहु प्रकार सङ्करहि सराहा । तुम्ह बिनु अस व्रत को निरबाहा ॥३॥ कृतज्ञ, (किये हुए उपकार को जाननेवाले ) कृपालु, रूप-शील के सागर, महान तेजस्वी रामचन्द्रजी प्रकट हुए। उन्होंने. बहुत तरह शिवजी की सराहना की और कहा कि आप के बिना ऐसा कठिन व्रत कौन निवाह सकता है ॥ ३ ॥ बहु बिधि राम सिवहि ससुझावा । पारबती कर जनम सुनावा ॥ अति पनीत गिरिजा के करनी । बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी॥ रामचन्द्रजी ने बहुत प्रकार शिवजी को समझाया और पार्वतीजी का जन्म सुनाया। अत्यन्त पवित्र गिरिजा की करनी कृपानिधान ( रामचन्द्रजो) ने विस्तार के साथ वर्णन । बहुत तरह समझाना यह कि-आपने भक्ति की रक्षा के लिये सती को त्याग कर इस कठिन प्रतिक्षा का पूर्ण रीति से पालन किया । आप के विरह से सती ने शरीर त्याग दिया। अब वह पार्वती होकर जन्मी है। आप की कृपा के लिये उसने बड़ा ही उन तप किया, जिससे । प्रसन्न हो ब्रह्मा ने वर दिया कि तुम्हें शिवजी मिलेंगे, इत्यादि । दो-अब बिनतो मम सुनहु सिब, जौँ मा पर निज-नेहु । जाइ बिबाहहु सैलहि, यह मोहि माँगे देहु ॥६॥ हे शिवजी ! यदि मुझ पर आपका स्नेह है तो अब मेरी विनती सुनिये। यह मांगने पर मुझे दीजिये कि जाकर शैल-कन्या (पार्वती) को विवाहिये ॥ ७६ ॥