पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२६१

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२०६ बामचरित-मानस। चौ०-यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिल कथा सुनहु मन लाई । बिस्वामित्र महामुनि ज्ञानी । बसहिँ बिपिन सुभ आत्रम जानी॥१॥ तुलसीदासजी कहते हैं- यह सब चरित्र मैं ने गा कर कहा । अब आगे की कथा मन लगा कर सुनिए । महामुनि ज्ञानी विस्वामित्रजी वन में अच्छा पाश्रम जान कर रहते हैं ॥१॥ जहँ जप जोग जज्ञ मुनि करहीं । अति मारीच सुबाहुहि दरही । देखत जज्ञ निसाचर धावहि । करहिँ उपद्व मुनि दुख पावहिँ ॥२॥ जहाँ मुनि जप, योग और यज्ञ करते हैं, पर मारीच तथा सुबाहु राक्षस से बहुत डरते हैं। यज्ञ को देखते ही राक्षस दौड़ते हैं और उत्पात करते हैं जिससे मुनि को दुःख होता है ॥२॥ गाधि-तनय मन चिन्ता ब्यापी । हरि विनु मरहिं न निसिचर पापी। तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि-मारा ॥३॥ गाधिपुत्र के मन में चिन्ता बढ़ी कि पापी राक्षस विना भगवान के न मरेंगे। तब मुनि. श्रेष्ठ ने मन में विचार किया कि परमेश्वर ने धरती का बोझ हरने के लिए जन्म लिया है ॥३॥ गाधिविश्वामित्र के पिता का नाम है । गाधि कुशिक राजा के पुत्र थे। हरिवंश में लिखा है कि कुशिक ने इन्द्र के समान पुत्र प्राप्त करने के लिए तप किया, तब इन्द्र के अंश से विश्वा- मिन उत्पन्न हुए। अपने तपाघल से विश्वामित्रजी क्षत्रिय शरीर से ब्राह्मण हुए हैं। इनका विशेष वृत्तान्त इसी काण्ड में ३६० चे दोहे के आगे प्रथम चौपाई के नीचे देखो। एहू मिस देखउँ पद जाई । करि बिनती आनउँ दोउ भाई ॥ ज्ञान विराग सकल गुन अयना । सेो प्रभु मैं देखत्र मरि नयना॥ १॥ इसी बहाने जा कर प्रभु के चरणों को देखू और विनती कर के दोनों भाइयों को लिवा लाऊँ । शान, वैराग्य और सम्पूर्ण गुणों के स्थान, उन रामचन्द्रजी को मैं आँस्त्र भर कर देखूगा ॥४॥ दो-बहु बिधि करत मनोरथ, जात लागि नहिँ बार। गये भूप-दरबार ॥ ३०६ ॥ बहुत तरह मनोरथ करते हुए जाने में देरी नहीं लगी। सरयू जल में स्नान कर के राज द्वार पर गये ॥२०॥ विश्वामित्रजी की अयोध्यापुरी कोजाने की इच्छा कारण है, अयोध्या में पहुँचना कार्य है ! मनोरथ किया और जाने में विलम्ब नहीं लगा तुरन्त नगर में जा पहुँचे 'चपलातिशयोक्ति अलंकार' है। यहाँ 'दरबार' शब्द से राजसमा का प्रयोजन नहीं है, राज द्वार (किले के पहले फाटक) से तात्पथ्य' है । यदि राजसभा में पहुँचना कहा जायगा तो नीचे की चौपाई से विरोध पड़ेगा। दरबार फारसी भाषा का शब्द है, । (१) राजसभा, कचहरी । (२) वाय, दरवाजा (३) राजा, महाराजा, इसके पर्यायो नाम है। बहुतेरे विद्वान् 'भूप-दरवार' को राजसभा करि भज्जन सरजू-जल,