पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। प्रथम सापाने, बालकाण्डं । २०५ करतल बान धनुष अति साहा । देखत रूप चराचर मोहा॥ जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिँ सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥४॥ हाथों में धनुष-बाण लिए अत्यन्त सुहावना रूप देखते ही जड़चेतन मोहित हो जाते हैं। जिन गलियों में सब भाई विचरते हैं, उन्हें देख कर सम्पूर्ण स्त्री-पुरुष थक जाते हैं ॥४॥ विचरण करते हैं चारों भाई, थकते हैं लोग लुगाई । कारण कहीं और कार्य कहीं 'प्रथम प्रसङ्गति अलंकार है। दो०- कोसलपुर-बासी नर, नारि बद्ध अरु बाल । प्रानहूँ ते प्रिय लागत, सब कहँ राम कृपाल ॥२०४॥ अयोध्यापुरी के निवासी स्त्री-पुरुष क्या बूढ़े और क्या बालक कृपालु रामचन्द्रजी सब को प्राण से भी अधिक प्यारे लगते हैं ॥२०४॥ चौ०-बन्धु सखा सँग लेहि बोलाई । बन मृगया नित खेलहिँ जाई ॥ पावन-मृग मारहिं जिय जानी । दिनप्रति नृपहि देखावहिं आनी॥१॥ भाई और मित्रों को बुला कर साथ लेते हैं और नित्य वन मैं जा करअहेर खेलते हैं। जी में पवित्र मृग जान कर मारते हैं और प्रतिदिन लाकर राजा को दिखाते हैं ॥३॥ जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे । “सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अज्ञा अनुसरहीं ॥२॥ जो मृग रामचन्द्रजी के बारस से मारे जाते वे शरीर त्याग कर देवलोक को चले जाते थे। छोटे भाइयों और मित्रों के सा भोजन करते और पितामाता की प्राशानुसार कार्य करते हैं ॥२॥ जेहि बिधि सुखो होहि पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सेाइ सञ्जोगा। बेद पुरान सुनहिँ मन लाई । आघु कहहिँ अनुजन्ह समुझाई ॥३॥ जिस प्रकार नगर के लोग प्रसन्न होते हैं, कृपानिधान रामचन्द्रजी वही कार्य करते हैं। । मन लगा कर वेद और पुराण सुनते हैं, फिर आप लघुबन्धुओं को समझा कर कहते हैं ॥३॥

प्रातकाल उठि के रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहि माथा ॥

आयसु माँगि करहि पुर-काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा ren प्रातःकाल उठ कर रघुनाथजी माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं । श्राश्ना माँग कर नगर का काम करते हैं, उनके चरित्र को देख कर राजा मन में हर्षित होते हैं ॥४॥ । दो-व्यापक अकल अनीह अज, निर्गुन नाम न रूप। भगत-हेतु नाना विधि, करत चरित्र अनूप ॥ २०५ ॥ जो व्यापक-ब्रह्मा, अजहीन, चेष्टा रहित, अजन्मे, गुणों से परे हैं और जिनका न नाम है न ज्य, वे भक्तों के लिए नाना प्रकार के अनुपम चरित करते हैं ।।२०५॥ अङ्गहीन निश्चेष्ट-ब्रह्म का शरीरधारी होकर लीला करना विरोधाभाल अलंकार है। १