पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३४

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1 1 ( दूसरे दीक्षागुरु । डाक्टर प्रिपर्सन ने इनकी गुरु-परम्परा की खोज करके एक सूची प्रकाशित की है। तुलसीजीवनी और सभा की प्रति में उसका यथातथ्य उल्लेख है । वह इस प्रकार है- १ श्रीमन्नारायण १५ श्रीलोकाचार्य २६ श्रीपूर्णानन्द २,श्रीलक्ष्मी १६ श्रीपाराशराचार्य ३० श्रीहर्यानन्द ३ श्रीधर मुनि १७ श्रीवाकाचार्य ३१ श्रीश्रध्यानन्द ४ श्रीसेनापतिमुनि १८ श्रीलोकाचार्य ३२ श्रीहरिवर्यानन्द ५ श्रीकारिसूनु मुनि १६ श्रीदेवाधिपाचार्य ३३ श्रीराघवानन्द ६ श्रीसैन्यनाथ मुनि २० श्रीशैलेशाचार्य ३४ श्रीरामानन्द ७ श्रीनाथ मुनि २१ श्रीपुरुषोत्तमाचार्य ३५ श्रीसुरसुरानन्द - श्रीपुण्डरीक २२ श्रीगङ्गाधरानन्द ३६ श्रीमाधवानन्द श्रीराम मिश्र २३ श्रीरामेश्वरानन्द ३७ -श्रीगरीबानन्द १० श्रीपाराङ्कुश २४ श्रीद्वारानन्द ३८ श्रीलक्षमीदासजी ११ श्रीयामुनाचार्य २५ श्रीदेवानन्द 28 श्रीगोपालदासजी १२ श्रीरामानुज स्वामी २६ श्रीशामानन्द ४० श्रीनरहरिदासजी १३ श्रीशठकोपाचार्य २७ श्रीश्रुतानन्द ४१ श्रीतुलसीदासजी १४ श्रीरेशाचार्य २८ श्रोनित्यानन्द चारों का उपद्रव । कहा जाता है कि एक दिन चार चार रात में चोरी करने की इच्छा से गोलाईजी के स्थान मै आये। उन चारों को दिखाई दिया कि एक श्यामल भीमकाय मनुष्य हाथ में धनुष-बाण लिये खड़ा है। वे सब डर कर लौट गये। इसी तरह दूसरे दिन आये तो देखा कि वही मनुष्य पहरा दे रहा है। चोरों ने दूसरे दिन सवेरे गोसाईजी के पास जा सब भेद प्रकट करके पूछा -महाराज ! रात मै वह पहरा देनेवाला श्यामल मनुष्य कौन है ? सुनते ही गोस्वामीजी समझ गये कि मेरी इस तुच्छ वस्तुओं की रखवाली के निमित्त स्वामी को इतना बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है। उन्हें बड़ ग्लानि हुई और नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी । जितनी मूल्यवान सामग्रियाँ उनके पास थी सब ब्राह्मणों को दे दी। मन में सोचा कि न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी । यह लीला देख चोरों को महान् आश्चर्य हुआ और अपनी करनी पर पश्चाताप करने लगे। अन्त को वे भी दुराचार से छूट कर परम त्यागी हो गये और हरिभक्ति में लीन होकर समय बिताने लगे। मुर्दे को जीवित करना। एक बार गोसईजी गंगा स्नान करके कुटी की ओर आ रहे थे कि राह में एक स्त्री ने अत्यन्त दीन भाव से धरती पर अपना मस्तक रख उन्हें दंडवत प्रणाम किया । उन्होंने कहा 'सौभाग्यवती' रह । उस स्त्री ने कहा-महाराज ! मेरे पतिदेव स्वर्गगामी हो गये, मैं उनके शव के साथ सती होने के लिये जा रही हूँ। अब मुझे सोहाग कहाँ ? पर आपका आशीर्वाद झूठा नहीं है। सकता, यह कहते हुए करुणा से वह माँस बहाने लगी। गोस्वामीजी के हदय में दया का स्रोत उमड़ पाया, वे तुरन्त शव के समीप गये अपने कमण्डलु का जल उस मुर्दे पर छिड़क कर बोले- बेटी ! रामनाम उचारण कर, व्यर्थ हो क्यों सो रहा है ? कहते हैं वह मृतक जीवित होकर उठ बैठा। जब यह खबर लोगों में फैखी, तब झंड' के झुड मनुष्य दर्शनार्थ आने लगे। इस भीड़ भाड़ से भजन . १.