पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४५१

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रामचरित मानस । सकउँ तार अरि अमरउ मारी। काह कीट वपुरे नर नारी जानसि मार लुभाव बरोरू । मन तव आनन-चन्द चकोर ॥२॥ यदि देवता भी तेरा शत्रु हो तो मैं उसे सारसकता हूँ फिर बेचारे कीड़े की तरह स्त्री. पुरुष क्या चीज़ हैं ? हे सुन्दर जाँघवाली ! मेरे स्वभाव को जानती है कि तेरे मुख रूपी चन्द्रमा का मेरा मन चकार है ॥२॥ जव देवता को मार सकता हूँ तय कीट के समान बेचारे स्त्री-पुरुप क्या चीज है अर्थातू वे मरे मराये हैं 'काव्यापत्ति अलकार' है । प्रिया प्रान-सुत-सरशस मारे । परिजन-प्रजा-सकल बस तोरे ॥ कछु कहउँ कपट करि तोही । भामिनि राम सपथ सत माही ३॥ प्रिये ! मेरे प्राण, पुत्र, सर्वस्व कुटुम्बी और सम्पूर्ण प्रजाजन तेरे अधीन है अर्थात् ये सब मेरे अधीन है और मैं तेरे अधीन हे भामिनी ! यदि मैं तुझ से कुछ कपट करके कहता होऊँ तो मुझे सौ चार रामचन्द्र की सौगन्ध है ॥३॥ राजापुर की प्रति में चारों तुकान्त (मारे, तोरें, तोही, मोही) सानुनासिक हैं। बिहँसि माँगु भनभावति माता । भूषन सजहि मनोहर NaT # घरी कुघरी समुझि जिय देखू । बेगि प्रिया परिहरहि कुखू waa मनचाही वात को हँस कर माँगो और सुन्दर अङ्गों में श्राभूषण पहिनो । हे प्रिये । समय कुसमय देख कर मन में समझो तुरन्त बुरे वेश को त्याग दो nan राजा को कहना तो है रामचन्द्रजी के राज्याभिषेक की बात कि ऐसे महल के समय में अमल वेश न करना चाहिये । पर इस बात को न कह कर यह कहना कि घरी कुवरी देख कर जी में समझी और कुवेश त्याग हो 'ललित अलकार है। दो-यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि, बिहँसि उठी भति-मन्द । भूषन सजति बिलोकि मृग, मनहुँ किरातिनि फन्द ॥२६॥ यह सुन,कर और बड़े महत्व का सौगन्द विचार कर नोटी बुद्धिचाली केकयी हँस कर उठी । गहना पहनने लगी, ऐसा मालूम होता है माने मृग को देख कर भीलनी जाल सजती हो॥२६॥ राजा और मृग, केकयी और किरातिन, ऊपर हँसना पेट में कपट और फन्दा परस्पर उपमेय उपमान हैं। मृग को देख कर उसको फंसाने के लिये भीलनी जाल फैलाती ही है। यह 'उत्कविषया वस्तुत्प्रेक्षा अलकार' है। चौ०-पुनि कह राउ सुहृद जिय जोनी । प्रेम पुलकि मृदु मज्जुल बानी ॥ भामिनि भयउ तोर मन भावा । घर घर नगर अनन्द-धधावा १॥ फिर राजा मन में उसको सुन्दर हथवाली जान कर प्रेम से पुलकित होकर मनोहर वाणी से कहते हैं । हे भामिनी ! तेरे मन में सुहानेवाली बात हुई, नगर में धर धर आनन्द की दुन्दुभी बज रही है ॥१॥ इस कथन से राजा की निश्छलता व्यजित होती है।