पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। रामचरिस-मानस । पति आशा का पालन और सासु की सेवा दोनों महान धर्म घर में रहने से मुलम होंगे, यह व्यशार्थ वाच्यार्थ के बराबर होने से तुल्यप्रधान गुणीभूत व्यक्त है। एहि ते अधिक धरम नहिं द्वजा । सादर सासुर-ससु-पद-पूजा ॥ जब जब मातु करिहि सुधि भरी। होइहि प्रेम-विकल मति भारी ॥३॥ इससे बढ़ कर दूसरा धर्म नहीं है कि आदर- पूर्वक सासु और ससुर के चरणों की सेवा करो। जब जब माताजी मेरी सुध करेंगी और प्रेम से विकल होकर उनकी बुद्धि भोली हो जायगी ॥३॥ तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी । सुन्दरि समुझायेहु मृदु-बानी ॥ कहउँ सुमाय सपथ सत माही । सुमुखि मातु-हित राखउँ ताही ॥४॥ हे सुन्दरी | तब तब तुम पुरानी कथाओं को कोमल वाणी से कह कर समझाना । हे सुमुखी ! मुझे सैकड़ों सौगम्द है, यह मैं स्वभाव से ही कहता हूँ कि तुमको माता के लिए घर में रखता हूँ ॥४॥ दो--गुरु-चुति सम्मत धरम-फल, पाइय चिनहिँ कलेस । हठ-बस सब सङ्कट सहे, गालव नहुष-नरेस ॥१॥ गुरु और वेद की सम्मति से विना क्लेश के धर्म-फल मिलता है। हठ ( दुराग्रह ) के अधीन होकर सब ने सङ्कट ही सहा है, गालवमुनि और नहुप राजा को देखो ( कितना कष्ट उठाया)॥ ६१॥ हठ न करो नहीं गालव, नहुष की तरह कष्ट उठाओगी, इस वाच्यार्थ में असुन्दर गुणीभूत व्यङ्ग है । गालव मुनि ने विश्वामित्रजी से विधा पढ़ी, अन्त में गुरु से दक्षिणा मांगने के लिए आग्रह किया। विश्वामित्रजी ने कहा जाप्रो, मैं तुमसे गुरु दक्षिणा नहीं चाहता । पर गालव ने बार बार हठ किया, विश्वामित्रजी ने 100 श्मामकरण घोड़े माँगे। उसे इकट्ठा करने में गालव को बड़े बड़े कष्ट उठाने पड़े। नहुष राजा-बड़े ज्ञानी, सन्तोषी और धमात्मा थे । एक बार इन्द्र प्रह्महत्या के कारण छिप गये और इन्द्रासन खाली हो गया। उस समय राजा नहुष इन्द्र हुए। उन्होंने इन्द्राणी की सेज पर जाने के लिए बड़ा दुराग्रह किया। शची ने अपने बचाव के लिए सुर-गुरु की सम्मति लेकर नहुष के पास कहला भेजा कि अवाहन पर चढ़ कर श्रानो तो मैं पति भाव से स्वीकार करूँगी। राजा ने सप्तर्षियों से प्रार्थना की, वे परोपकार मान कर पालकी कन्धे पर लेकर पहुँचाने चले । कामातुर राजा ने कहा 'सर्प सप' अर्थात् जल्दी जल्दी चलो । मुनियों ने कुपित हो पालकी फेक दी और शाप दिया कि तू जा कर सर्प हो । राजा नहुष सर्प हो कर बहुत काल पर्यन्त दुःख उठाया, द्वापर युग में राजा युधिष्ठिर के साथ प्रश्नोतर होने से उनका शापोद्धार हुआ।