पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५७७

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५१६ रामचरित-मानस । दो०-कहि प्रनाम कछु कहन लिय, सिय भइ सिथिल सनेह । थकित-बचन लोचन-सजल, पुल-पल्लवित-देह ॥१५२॥ सीताजी प्रणाम कह कर कुछ कहने लगी, परन्तु स्नेह से वे शिथिल हो गई। उनकी वाणी रुक गई, नेत्रों में जल भर आया और शरीर रोमान्त्रित होकर फूल आया ॥ १५२ ॥ शंका-लक्ष्मणजी के सन्देश को न कहने के लिये रामचन्द्रजी ने शपथ दिला कर कहा था, उसकी चर्चा सुमन्त्र ने कर ही दी। सीताजी ने लम्बा सन्देशा कहा था; किन्तु उसे विलकुल उड़ा दिया कुछ नहीं कहा, इसका क्या करण है ? उत्तर-लक्ष्मण जी के सन्देशे की चर्चा इसलिये किया कि उससे रामचन्द्र जी को पितृमक्ति, विचारशीलता और दूरदर्शिता प्रकट होती है । सीताजी ने सन्देशा कहते समय काकु से वर्जन किया था, क्योंकि उससे ससुर-सानु, पिता-माता, परिवार और नगर-निवासियों से स्वामी के बिना वैराग्य भाव प्रकट करना स्नेह का बाधक हो सकता है, इससे सुमन्त्र ने सीताजी के स्तम्भ, रोमान्च, अश्रु और स्वरभङ्ग सात्विक अनुभावों के सिवा सन्देशा कुछ भी नहीं कहा। चौo-तेहि अवसर रघुबर-रुख पाई । केवट पारहि नाव चलाई ॥ रघुकुल-तिलक चले एहि भाँती । देखेउँ ठाढ़ कुलिसधरिछाती ॥१॥ उस समय रघुनाथ का रुख पाकर केवट पार को नाव ले चला। रघुकुल के शिरोमणि इस तरह चले और मैं छाती पर बन रख पर खड़ा देखता रहा ॥१॥ मैं आपन किसि कहउँ कलेसू । जियत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू ॥ अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ । हानि-गलानि-साच-बस भयक ॥२॥ मैं अपना कष्ट किस तरह कहूँ जब कि रामचन्द्रजी का सन्देशा लेकर जीता लौटा पाया हूँ। ऐसा वचन कह कर मन्त्री हानि, ग्लानि और सोच के वश हो चुप रह गये ॥२॥ रामचन्द्रजी को वन जाते देख कर मुझे मर जाना चाहता था, जंव में सन्देशा लेकर जीता जागता लौट आया तब अपना मिथ्या क्लेश क्या कहूँ । यहाँ शोक और हानिजन्य शिथिलता का वर्णन ग्लानि 'सञ्चारीमाव' है। सूत बचन सुनतहि नरनाहू । परेउ धरनि उर : दारुन-दाहू तलफत बिषम-माह मन मापा । भाँजा मनहुँ भीन कहँ व्यापो ॥३॥ सारथी के वचनों को सुनते ही राजा के हृदय में भीषण ज्याला उत्पक्ष हुई, धरती पर गिर पड़े। उनके मन में भयङ्कर मोह ने प्रभाव किया जिससे वे तड़पने लगे, ऐसा मालूम होता है मानो मछली को माँजा ब्याप गया हो ॥३॥ भाँजा रोग फैलने यर मछलियाँ बेहोश हो ही जाती हैं। यह 'उक्तविषया घरतं प्रेक्षा अलंकार' है। माँजा-शब्द की व्याख्या इसी काण्ड में ५३ वे दोहा के आगे दूसरी चौपाई के नीचे की टिप्पणी देखिये। ,