पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीमद् गोस्वामि तुलसीदास कृत रामचरितमानस चतुर्थ-सोपान किष्किन्धाकाण्ड शार्दूलविक्रीडित-वृत्त । कुन्देन्दीवरसुन्द्रावतिबलौ । विज्ञानधामावुभौ । शोभायौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतो गाविप्रवृन्दप्रियौ । मायामानुषरूपिणी रघुवरौ सद्धर्म वौ हितो। सीतान्वेषण तत्पशै पथिगता भक्तिप्रदा तौ हिनः ॥१॥ कुन्द के फूल और श्यामकमल के समान सुन्दर, अत्यन्त बलवान, विज्ञान के स्थान, शोभा सम्पन्न, अच्छे धनुधर, वेदों से प्रशंसित, गौ और ब्राह्मण-वृन्द के प्यारे, माया से मनुन्य रूपधारी, रघुकुल में श्रेष्ठ, सचम के रक्षक हितकारी, सीताजी के खोजने में तत्पर, मार्ग में विचरते हुए वे दोनों राम और लघमण हमारे लिए निश्चय ही भक्ति के देनेवाले हो ॥१॥ ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययम् । श्रीमद भुमुखेन्दुसुन्दरवरं संशोषितं सर्वदा । संसारामयभेषजं सुखकर श्रीजानकी जीवनम् । धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम् ॥२॥ पुण्यवान धन्य हैं जो वेद रूपी समुद्र से उत्पक्ष, पापों को सर्वथा नष्ट करनेवाले, अक्षय, श्रीशिवजी के भुखचन्द्र में अच्छी तरह श्रेष्ठ सुन्दर सबकाल में शोभायमान, संसार