पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८२२

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+ चतुर्थ सोपान, किष्किन्धाकाण्ड'। ७५७ मेली कंठ सुमन कै माला। पठवा पुनि बल देइ विसाला पुनि नाना बिधि मई लराई । बिटप ओट देखहि. रघुराई ॥४॥ रामचन्द्रजी ने सुप्रीष के गले में फूल की माला पहनायी और विशाल बल (भरोसा) देकर फिर भेजा। तब दोनों की अनेक तरह लड़ाई हुई और पेड़ की आड़ में खड़े रघुनाथजी देख रहे हैं ॥४॥ तारा के समझाने पर बाली ने रघुनाथजी को समदर्शी कहा था, इसलिये सुयोव के गले में माला डाल कर अपनी उपस्थिति सूचित करते हुए जनाया कि सुग्रीव मेरा आश्रित और मैं उसका रक्षक हूँ । यदि तू इससे बैर त्याग मित्रता कर लेगा तो मैं तुझे न माऊँगा। इस गूढ़ मर्भ के सूचित करने में 'युक्ति अलंकार' है। दो-बहु छल बल सुग्रीव करि, हिय हाग भय मानि। . मारा बाली राम तंब, हृदय माँझ सर तानि ॥८॥ जब सुग्रीव बहुतेरा छल बल कर के हार गया और मन में भयभीत हुआ, तब रामचन्द्रजी ने धनुष तान कर पाली की छाती में बाण मारा | चौ०-परा बिकल महि सर के लागे । पुनि उठि बैठि देखि प्रभु आगे ॥ स्याम गात सिर जटा बनाये । अरुन नयन सर चाप चढ़ाये ॥१॥ चाण के लगने से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़ा, फिर उठ कर बैठ गया और प्रभु रामचन्द्रजी को सामने देखा । श्याम शरीर, सिर पर जटा बनाये, लाल नेत्र और धनुष पर थाण चढ़ाये हैं ॥१॥ यहाँ लोग शङ्का करते हैं कि रघुनाथजी का धनुध पर बाण चढ़ाना निष्फल नहीं जाता, फिर उसकी अमोघता क्या हुई? उत्तर-रामचन्द्रजी सत्यसंकल्प हैं, जप प्रतिज्ञा के साथ धनुष पर बाण चढ़ाते हैं तब वे निष्फल नहीं जाते। पाली राजा है, इसके बहुत सहायक हैं इस लिए स्वभावतः धनुष पर बाण चढ़ाये हैं। अथवा बाण हाथ में लिए हैं और धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाये हैं । सन्देह का कोई कारण नहीं है। पुनि पुनि चितइ चरनचित दीन्हा । सुफल जनममाना प्रभु चीन्हा॥ हृदय प्रीति मुख बचन कठोरा । बोला चितइ राम की ओरा ॥२॥ चार बार देख कर चरणों में चित्त दिया और स्वामी को पहचान कर जन्म सुफल माना। हृदय में प्रेम और मुख से कठोर ववन रामचन्द्रजी की ओर देख कर बोला ॥२॥ मन में प्रेम रुपी कारण के विपरीत कठोर वचन रूपी कार्य का प्रकट होना 'द्वितीय विषम अलंकार' है। धरम हेतु अवतरेहु गोसाई । मारेहु मोहि व्याध की नाई । मैं बैरी सुग्रीव पियारा । अवगुन कवन नाथ माहि मारा ॥३॥ हे गुसाई! आप तो धर्म की रक्षा के लिए अवतरे हैं, पर मुझे घ्याधा की तरह छिप कर