पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९३९

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रामचरितमानस जासु प्रान अस्विनी कुमारा । निलि अरु दिवस निमेष अपारा ॥ खवन दिखा दस बेद बखानी । मारुत स्वास निगम निजबानी ॥२॥ जिनकी माक अश्विनी कुमार हैं, रात और दिन असीम आँखों का पलकमारना है । वेद कहते हैं कि दसों दिशाएँ कान हैं, पचन श्वास है और वेद स्वकीय वाणी है ॥२॥ अश्विनी कुमार-ये प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र हैं। एक बार सूर्य के तेज को सहन करने में असमर्थ हो अपनी दो सन्तति यम, यमुना और छाया को छोड़ कर प्रभा यन में भाग गई, वहाँ घाड़ी का रूप धारण कर तप करने लगी। जय कुछ दिन बाद सूर्य को यह पता लगा तब वे घोड़ा बन कर वहाँ गये । इस संयोग से अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई। ये दोनों देवताओं के वैद्य हैं। अधर-लोस जम-दखन-कराला । माया हास बाहु-दिगपाला। आनन-अनल अम्बुपति-जोहा । उत्तपति पालन प्रलय समीहा ॥३॥ जिनका पाठ लोभ है, भीषण दाँत यमराज हैं, हँसी माया है, दिगपाल भुजा है, मुस्न अग्नि हैं, जिह्वा वरुण हैं, इच्छा उत्पति-पालन और प्रलय करना है ॥३॥ रोम-राजि अष्टादस-बारा । अलिप-लैल सरिता नस-जारा ॥ उदर-उदधि अध-गो जातना । जग-मय प्रभु का बहु कलपना ॥४॥ रोमावली अठारह मार घनस्पतियाँ हैं, हड्डी पर्वत हैं, नस समूह नदियाँ हैं, पेट समुद्र है, नीचे की इन्द्रियाँ नरक हैं, बहुत क्या कहा जाय प्रभु जगन्मय हैं ॥४॥ बारह करोड़, तीस लाख, सोलह सौ साठ वृक्ष की 'भार' संज्ञा है । दो-अहङ्कार-सिव बुद्धि-अज, मन-ससि चित्त-महान । अनुज बास सचराचर-रूप राम भगवान ॥ अहङ्कार शिव हैं। बुद्धि ब्रह्मा हैं, मन चन्द्रमा हैं और चित्त विष्णु हैं । मनुष्य रूप में स्थित भगवान रामचन्द्रजी चराचर रूप हैं। भगवान के विराट रूप का यजुर्वेद के ३१वें अध्याय में और ऋग्वेद में कई जगह सवि. स्तर निरूपण है । वाल्मीकीय रामायण युद्धकाण्ड के ११९ वे सर्ग में और श्रीमद्भागवत द्वितीय स्कन्ध के प्रथम अध्याय में विराट रूप का वर्णन है। अस बिचारि सुनु मानपति, अनुसन बयर बिहाइ । प्रीति करहु रघुबीर-पद, सम अहिवात न जाइ ॥१५॥ हे प्राणनाथ ! सुनिए, ऐसा विचार कर प्रभु से बैर त्याग दीजिए । रघुनाथजी के चरणों में प्रीति कीजिए, जिसमें मेरा अहिबात (सोहाग) न जाय ॥१५॥