पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________


-- -


...---- - ... - - ॐ ॐ तारकु असुर भयउ तेहि काला ॐ भुज प्रताप चल तेज विसाला राम तैइ सर्व लोक लोकपति जीते ॐ भए देव सुख संपति रीते' होने) । उन्हीं दिनों तारक नाम को एक असुर हुआ, जिसके भुजाओं का बल, ! ) प्रताप और तेज बहुत बड़ा था। उसने सब लोक और लोकपालों को जीत लिया। ।। है और सारे देवता सुख-सम्पत्ति से रहित हो गये । । एम अजर अमर सो जीति न जाई के हारे सुर करि विविध लराई ॐ तब विरंचि सन जाइ पुकारे ॐ देखे विधि सव देव दुखारे . वह अजर-अमर था। किसी से जीता नहीं जाता था । देवता उसके साथ बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़कर हार गये । तव सब देवताओं ने ब्रह्मा के पास जाकर पुकार मचाई। ब्रह्मा ने देखा कि सब देवता बहुत दुखी हैं। पाने का सबसन कहा बुझाइ बिधि इलुज निधन तव होइ।। - संधु सुक्क संभूत सुत एहि जीते इन सोइ ॥२२॥ ब्रह्मा ने सबको समझाकर कहा--इस दैत्य की मृत्यु तत्र होगी, जत्र । शिवजी के बीर्य से पुत्र उत्पन्न हो; वहीं इसे युद्ध में जीतेगा। मोर कहा सुनि करहु उपाई होइहि ईस्वर करिहि सहाई के सती जो तजी दच्छ मख देहा ॐ जनसी जोइ हिमाचल गेहा मेरी बात सुनकर उपाय करो। ईश्वर सहायता करेगा, तो काम वन जायेगा। सती ने जो दक्ष के यज्ञ में शरीर छोड़ा था, वह हिमाचल के घर जाकर जन्मी है। तेइ तषु कीन्ह सम्भु पति लागी ॐ सिव समाधि वैठे सव त्यागी जदपि अहह असमंजस भारी ॐ तदपि बात एक सुनहु हमारी ए उसने शिवजी को पति बनाने के लिये तप किया है; पर शिवजी सव छोड़-छाड़कर समाधि लगा बैठे हैं। यद्यपि है तो बड़े असमंजस की बात तथापि मेरी एक बात सुनो। पठवहु काम जाइ सिव पाहीं ॐ करइ छोलु संकर मन माहीं है तब हम जाइ सिवहिं सिर नाई के करवाउच विवाह वरिझाई तुम जाकर कामदेव को शिवजी के पास भेजो। वह जाकर उनके मन में १. रहिन, खाली। - - -- - - -- - - - - - - A S A