पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११६

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.. . बालॐ उस समय एक क्षणभर में वेदों की सारी मर्यादा जाती रही। राम) ब्रह्मचर्ज व्रत संजम नाना ॐ धीरज धरम ग्यान विग्याना है सदाचार जप जोग विरागा ॐ समय विवेक कटकु सत्रु भागा | व्रह्मचर्य, व्रत, नाना प्रकार के संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदा चार, जप, योग, वैराग्य आदि विवेक की सारी सेना डरकर भाग गई । छन्द-भागेउ बिबेकु सहाइ सहित सौ सुभट संजुग सहि सुरे। । राम) सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि सहूँ जाइ तेहि अवसर ढुरे ॥ खेल । होनिहार का करतार को रखवार जग खरसरु परा। | दुइ माथ केहितिनाथ जेहि हुँ पि झर धनु सरु धरा। ३ राम विवेक अपने सहायकों-सहित भाग गया। उसके योद्धा रण-भूमि से पीठ (तीन) में ॐ दिखा गये । उस समय अच्छे-अच्छे ग्रंन्थ पर्वतों की गुफाओं में जा छिपे । सारे । राम) जगत् में खलबली मच गई और सब कोई कहने लगे---हे विधाता ! अव क्या न होने वाला है ? हमारी रक्षा कौन करेगा ? ऐसा दो सिर वाला वह कौन है, जिसके । के लिये कामदेव ने कोप करके हाथ में धनुष-बाण उठाया है ? जे सजीव जग चर अचर नारि पुरुष अस नाम ।। है l ते निज निज मरजाद तजि भए सकल वस कास।४। राम संसार में जितने प्रकार के चर, अचर जीव थे और जिनकी स्त्री-पुरुष संज्ञा

  • थी, वे सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश हो गये। Jएम सबके हृदय मदन अभिलाखा 8 लता निहारि नवहिं तरु साखा नदी उमगि अम्बुधि कहुँ धाई ॐ सङ्गम कहिं तलाव तलाई ।

सबके हृदय में काम की इच्छा हो गई। लता (वेल) को देखकर वृक्षों की डालियाँ झकने लगीं । नदियाँ उमडकर समुद्र की ओर दौड़ीं और ताल-तलैयाँ ए भी आपस में संगम करने (मिलने-जुलने) लगीं। जहँ असि देसा जड़न के बरनी ॐ को कहि सकइ सचेतन्ह करनी ॐ पसु पच्छी नभ जल थल चारी ॐ भए कामवस समय विसारी (स) जब जड़ ( वृक्ष, नदी आदि ) की यह दशा कही गई है, तब चेतन जीवों की करनी कौन कह सकता है ? आकाश, जल और थल पर रहने वाले सारे ।