पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

के पशु-पक्षी समय को भुलाकर काम के वश में हो गये। .....। एम) मदन अन्ध व्याकुल सर्व लोका ॐ निसि दिन नहिं अवलोकहिं कोका ॐ देव दनुजः नर किन्नर ब्याला के प्रेत पिसाच भूत वेताला (राम) .. सब लोग कामांध होकर व्याकुल हो गये। चकवा और चकई रात-दिन से नहीं देखते । देव, दैत्य, मनुज, किन्नर, साँप, प्रेत, पिशाच, भूत, बेताल--- । इन्ह के दसा न कहेउँ वखानी ॐ सदा काम के चेरे जानी, सिद्ध विरक्त महा मुनि जोगी ॐ तैपि' कामबस भये वियोगी मैंने इनकी दशा का वर्णन इसलिये नहीं किया कि इनको तो सदा काम- कैं देव का गुलाम ही जानना चाहिये । सिद्ध, विरक्त, महामुनि और योगी भी काम के वश में हो गये और विरही बन गये। .. . राम् छन्द-भए कामवस जोगीस तापस पामरन्ह की को कहै। राम देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहै॥ सन अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अवलोमयं । हूँ दुइ दण्ड भरि ब्रह्मांड भीतर काम कृत कौतुक अयं ॥ । जब योगीश्वर और तपस्वी ही काम के वश हो गये, तब अधर्मों की कौन के कहेः.१ जो सब चराचर को ब्रह्ममय देखते थे, वे अब सबको स्त्रीमय देखने लगे। स्त्रियाँ सारे संसार को पुरुषमय देखने लगीं और पुरुष सबको खीमय देखने के लगे। दो घड़ी तक सारे ब्रह्माण्ड में कामदेव का रचा हुआ यह तमाशा रहा । ges धरा न काहू धीर सबके मन मनसिज हरे। :: 23 जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महूँ॥८५॥ * किसी ने भी हृदय में धैर्य नहीं रक्खा। सबके मेन कामदेव ने हरे लिये। होम) हाँ, जिनकी रघुनाथजी ने रक्षा की, वे ही उस समय बचे रहे। ॐ उभय घरी अस. कौतुक. भयऊ ॐ जब लगि काम संभु पहँ गयऊ राम सिवहिं विलोकि ससंकेउ मारू ॐ भयउ जथाथिति सवा संसारू

दो घड़ी तक यह तमाशा हुआ, जबतक कामदेव शिवजी के पास गया । १. वे भी }. २. यह, ऐसा । --.
::::::

|