पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१४३

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धू १४०: विना : . .हे सुख के राशि ! जो आप मुझ पर प्रसन्न हैं और जो सचमुच मुझे म) अपनी दासी जानते हैं तो हे स्वामी ! आप रामचन्द्रजी की नाना प्रकार की * कथा कहकर मेरा अज्ञान दूर कीजिये ।। रामा जासु भवन सुरतरु तर होई ॐ सहि कि दरिद्र जनित दुख सोई राम छै ससि भूषन अस हृदय विचारी ॐ हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी राम जिसका घर कल्पवृक्ष के नीचे हो, भला, वह दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को एम है क्यों सहेगा ? हे चन्द्रभूषण ! हे नाथ ! यही बात मन में विचारकर मेरी बुद्धि के भारी भ्रम को दूर कीजिये। है प्रभु जे मुनि परमारथ वादी ॐ कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी सेष सारदा बेद पुराना ॐ सकल करहिं रघुपति गुन गाना हे प्रभु ! परमार्थ तत्व के ज्ञाता और वक्ता मुनि रामचन्द्रजी को अनादि ॐ ब्रह्म कहते हैं। और शेष, सरस्वती, वेद, और पुराण सबं रामचन्द्रजी का गुण हैं गाते हैं। तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ॐ सादर जपहु अनंग अराती (राम) राम सो अवध नृपति सुत सोई 8 की अज अगुन अलख गति कोई राम) . हे कामदेव के शत्रु ! आप भी दिन-रात आद्रपूर्वक राम-राम जपा करते है राम) हैं। क्या राम वही हैं, जो अयोध्या के राजा के पुत्र हैं ?. या कोई और अजन्मा, ॐ निर्गुण और अगोचर है ? एम - जौं नृप तनय तो ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। 1 देखि चरित महिमा सुनत श्रमति बुद्धि अति मोर। ) यदि वे राजा के पुत्र हैं तो ब्रह्म कैसे है जिनकी मति स्त्री के विरह में बावली कैं हो गई थी उनके चरित देखकर और महिमा सुनकर, मेरी बुद्धि अत्यन्त भ्रम में ॐ पड़ रही है। राम) जौं अनीह व्यापक विभु कोऊ ॐ कहहु बुझाई नाथ मोहिं सोऊ अग्य जानि रिस उर जनि धरहूं ॐ जेहि विधि मोह सिटइ सोइ करहू | .. जो इच्छारहित, व्यापक, समर्थ ब्रह्म कोई और है, तो हे नाथ ! उसे भी हैं । मुझे समझाकर कहिये । मुझे नादान समझकर आप मन में क्रोध न लाइयेगा। के १. नीचे, तले । २. क्रोध ।