पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

हैं इसके सिवा रामचन्द्रजी के और भी जो छिपे हुये अनेक चरित्र हों, उनका । भी वर्णन कीजिये । आप अतिशय निर्मल ज्ञान वाले हैं। हे दयालु ! जो बात है मैंने न पूछी हो, आप उसे भी गुप्त न रखियेगा । राम तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद वखाना ॐ अनि जीव पाँवर का जाना । । प्रस्न उमा कै सहज सुहाई ॐ छल विहीन सुनि सिव मन भाई एम् वेद ने आपको तीनों लोकों का गुरु कहा है। दूसरे पामर जीव उस रहस्य | को क्या जानें १ पार्वती के सहज, सुन्दर और छलरहित (सरल) प्रश्न शिवजी के मन को बहुत अच्छे लगे। हरि हि रामचरित सब आए 8 प्रेम पुलक लोचन जल छाए श्रीरघुनाथ रूप उर आवा ॐ परमानंद अमित सुख पादा महादेवजी के हृदय में सब रामचरितों का स्मरण हो आया । प्रेम के मारे उनकी रोमावली खड़ी हो गई और आँखों में जल भर आया । श्रीरामचन्द्रजी का रूप उनके हृदय में आ गया, जिससे उन्होंने बड़ी ही आनन्द और अनन्त सुख पाया। राम मगन ध्यालरस दंड जुग' पुनिसन बाहेर कीन्ह ।। | रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह ॥१११॥ शिवजी दो घड़ी तक ध्यान के रस में मग्न रहे; फिर उन्होंने सन को । ( ध्यान से ) बाहर किया। और तब वे प्रसन्न होकर रामचन्द्रजी को चरित वर्णन || करने लगे। झूठउ सत्य जाहि बिनु जानें 5 जिमि भुजंग विनु रजु पहिचानें जेहि जाने जग जाइ हेराई ३ जागे जथा सपन भ्रम जाई जिसके बिना जाने झूठ भी सच मालूम होने लगता है, जैसे बिना पहचाने । रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है। और जिसके जानने पर संसार इस तरह लोप राम) हो जाता है, जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम जाता रहता है। बंदउँ बाल रूप सोइ रामू ॐ सव सिधि सुलभ जपत जितु नामू । मंगल भवन अमंगल हारी ® द्रवउ सो दसरथ अजिर विहारी * मैं उन्हीं रामचन्द्रजी के बालरूप की बन्दना करता हूँ, जिनका नाम १. दो। २. साँप । ३. रस्सी । ४. जिसका ।।