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बालकाण्ड, इ १४५ | जिन्ह हरि भगति हृदयं नहिं आनी ॐ जीवत सव समान तेइ प्रानी राम) जो नहिं करइ राम गुन गाना ॐ जीह सो दादुर जीह समाना सुमो जिन्होंने अपने हृदय में ईश्वर की भक्ति को स्थान नहीं दिया, वे प्राणी राम जीते हुए ही मुर्दे के समान हैं। जो जीभ रामचन्द्रजी के गुणों का गान नहीं करती, वह मेढक की जीभ के समान है। राम कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती ॐ सुनि हरिचरित न जो हरपाती गिरिजा सुनहु राम कै लीला ॐ सुर हित दनुज’ विमोहन सीला वह हृदय बज्र के समान कड़ा और निर्दय है, जो हरि-चरित को सुनकर * हर्षित नहीं होता । हे पार्वती ! रामचन्द्रजी की लीला सुनो, जो देवताओं को । कल्याण करने वाली और राक्षसों को मोहित करने वाली है। यो । रामकथा सुधेनु सम सेवत सब सुख दानि ।। 4- सत समाज सुरलोक सब को न सुने अस जानि।११३ रामचन्द्रजी की कथा कामधेनु के समान है, सेवा करने से सब सुखों को देने वाली है और सत्पुरुषों के समाज ही देवताओं के लोक हैं, ऐसा जानकर * इसे कौन न सुनेगा ? रामकथा सुन्दर कर तारी' ॐ संसय विहँग उड़ावनि हारी रामकथा कलि बिटप कुठारी' ॐ सादर सुनु गिरिराज कुमारी रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुन्दर ताली है, जो सन्देहरूपी पक्षियों | को उड़ा देती है। रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिये कुल्हाड़ी है। राम) हे पार्वती ! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो।[परंपरित रूपक]। राम नाम गुन चरित सुहाए ६ जनम करम अगनित सुति गाए राम जथा अनन्त राम भगवाना 8 तथा कथा कीरति गुन नाना | वेदों ने रामचन्द्रजी के नाम, गुण, चरित, जन्म और कर्म अनगिनत गाए हैं। जिस तरह भगवान् रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उसी तरह उनकी कथा, उनकी कीर्ति और उनके गुण भी अनन्त हैं। । तदपि जथासु त जसि“मति मोरी ॐ कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी - उमा प्रस्न तव सहज सुहाई ॐ सुखद संत संमत मोहि भाई = १. दैत्य । २. ताली । ३. कुल्हाड़ी । ४. जैसी ।।