पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१७७

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। १७४ . छतना ८ वे शाक, फूल और कंद का आहार करते थे और सच्चिदानन्द ब्रह्म को 5 सुमिरते थे। फिर भगवान के लिये वे तप करने लगे और मूल और फल को भी ॐ त्यागकर केवल जल के आधार पर रहने लगे। उर अभिलाष निरन्तर होई ॐ देखि नयन परम प्रभु सोई अगुन अखण्ड अनन्त अनादी ॐ जेहि चिंतहिं परमारथवादी हृदय में सदा यह अभिलाषा होती रहती थी कि हम कैसे उस परमप्रभु को आँखों से देखें, जो निगुण, पूर्ण, अंत-रहित और आदि-रहित है.और एम) जिसका चिंतन परमार्थवादी लोग किया करते हैं। नेति नेति जेहि बेद निरूपा ॐ चिदानंद निरुपाधि, अनूपा । संभु विरञ्चि विष्णु भगवाना ॐ उपजहिं जासु अंस ते नाना | जिसे वेद ‘नेति-नेति' ( इतना ही नहीं, इतना ही नहीं ) कहकर निरूॐ पण किया करते हैं। जो चिदानन्दु, उपाधिहीन और अनुपम है। जिसके अंश से अनेकों शम्भु, ब्रह्मा और भगवान् विष्णु जन्म लेते हैं। ऐसेउ प्रभु सेवक, बस अहई' के भगत हेतु लीला तनु.. गहई राम जौं यह वचन सत्य स्वति भाषा ॐ तौ हमार पूजिहि अभिलाषा राम है । ऐसे महान् प्रभु भी सेवक के वश में हैं और भक्तों के लिये लीला का शरीर धारण करते हैं। यदि वेद का कहा हुआ यह वचन सत्य है तो हमारी अभिलाषा भी पूरी होगी। एम् । एहि बिधि बीते वरष घट सहस बारि' आहार । हामी

  • संबत सप्त सहस्र पुनि रहे समीर अधार ॥१४४॥ ) है इस तरह जल का आहार करके तप करते हुये छः हज़ार वर्ष बीत गये। एम) फिर सात हजार वर्ष वे वायु के आधार पर रहे।

वरष सहस दस त्यागेर सोऊ ॐ ठाढ़े रहे एक पग दोऊ विधि हरि हर तप देखि अपारा ॐ मनु समीप आए वहु बारा दस हज़ार वर्षों तक उन्होंने जल और वायु का आधार भी छोड़ दिया। ए दोनों एक पग से खड़े रहे। व्रह्मा, विष्णु और शिवजी उनका अपार तप देखकर । बहुत बार उनके पास आये । १. है। २. पानी ।