पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०९

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॥ ॐ २०६ , मटित न . ॐ गिरि त्रिकूट एक सिंधु मँझारी' ॐ बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी हैं राम्रो सोइ मय दानव बहुरि सँवारा ॐ कनक रचित मनि भवन अपारा। . समुद्र के मध्य में न्निकूट नाम के पर्वत पर ब्रह्मा का बनाया हुआ एक है। । बड़ा भारी किला था। उसी को मय दानव ने फिर सेजा दिया । उसमें सोने के बने हुये और मणियों से जड़े हुये अगणित महल थे। भोगावति जसि अहि कुल बासा ॐ अमरावति जसि सक्र निवासी * तिन्हते अधिक रम्य अति बँका ॐ जग विख्यात नाम तैहि लंका जैसे नागों के कुल के रहने की पुरी भोगावती और इन्द्र के रहने की पुरी के अमरावती है, उनसे भी अधिक सुन्दर और बाँकी नगरी वह थी । संसार में उसको ॐ नास लंका प्रसिद्ध हुआ। एन । खाईं सिंधु सँभीर अति चारिह दिसि फिरि आव।. राम ॐ = कनक कोट मनि खचित दृढ़ बनिनजाइ बनाव१७८ समुद्र गहरी खाई की तरह जिसे चारों ओर से घेरे हुये है, जिसका मणियों से जड़ा हुआ सोने का मज़बूत परकोटा है, जिसकी सुन्दरता का वर्णन नहीं किया जा सकता। | हरि प्रेरित जेहि कलप जोइ जातुधान पति होइ। सूर प्रतापी अतुल बल दल समेत बस सोई।१७८ (२) ॐ | भगवान की प्रेरणा से जिस कल्प में जो राक्षसों का राजा होता है, वही शूर, प्रतापी, अतुलित बल वाला अपने दल-सहित उस पुरी में बसता है। रहे तहाँ निसिचर भट भारे ॐ ते सव सुरन्ह समर . संघारे अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे ) रच्छक कोटि जच्छपति केरे • पहले वहाँ बड़े-बड़े योद्धा राक्षस रहते थे। देवताओं ने उन सब को युद्ध मी में मार डाला। अब इन्द्र की प्रेरणा से कुबेर के एक करोड़ पहरेदार (या ) वहाँ यो) दसमुख कुतहुँ खबरि असि पाई के सेन साजि गढ घेरेसिजाई ॐ देखि विकट भट बड़ि कटकाई ॐ जच्छ जीव लै गए पराई १. मध्य में । २. इन्द्र । ३. कुवेर । |