पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१७

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ॐ २१४ . उवाट न ४ । प्रेम से प्रकट होते हैं। देश-काल, दिशा, विदिशा में बताओ वह स्थान कहाँ है, जहाँ प्रभु नहीं हैं ? अग जगमय सव रहित बिरागी ॐ प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी राम) मोर वचन सबके मन माना 8 साधु साधु करि ब्रह्म वखाना राम वे चर-अचर सब में हैं; पर सब से अलग हैं और किसी में अनुरक्त नहीं हैं। ॐ वे प्रेम से प्रकट होते हैं, जैसे आग । मेरी बात सबको प्रिय लगी । ब्रह्मा ने उसे शाबाश-शाबाश कहकर मेरी बड़ाई की । या र सुनि बिरंचि मन हरष तल पुलकि नयन बह नीर। पुणे

  • अस्तुति करत सुजोरि कर सावधान मतिधीर १८५ ) । मेरी बात सुनकर ब्रह्मा को मन आनन्दित हुआ, तन पुलकित हुआ, नेत्रों से म) से नीर बहने लगा। वे धीर-बुद्धि ब्रह्मा सावधान होकर, हाथ जोड़कर स्तुति हैं करने लगे। राम) छंद-जय जय बुर लायक जल सुखदायझनता भगवंता रामो

| गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता है। | पालन सुर धरनी अदभुत करनी सरम न जानई कोई हैं। जो सहज छुपात दीनदयाला करहु अनुग्रह सोई | हे देवताओं के स्वामी ! सेवकों को सुख देने वाले ! शरणागत को पालने ए वाले भगवान् ! आपकी जय हो, जय हो । हे गौ, ब्राह्मण का हित करने वाले ! असुरों के शत्रु ! समुद्र की कन्या लक्ष्मी के प्यारे पति ! आपकी जय हो। हे देवता ए और पृथ्वी को पालने वाले ! आपकी लीला अद्भुत है; कोई आपका भेद नहीं जानता । जो स्वभाव ही से कृपालु और दोनों पर दया करने वाले हैं, वही हम । पर कृपा करें ।। ॐ जय जय अबिलासी सब घट बासी व्यापक परमानन्दा । । अबिगत गौतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुन्दा॥ एमा जेहि लागि विरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृन्दा।। का निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानन्दा॥ १. लिये।