पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३

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सुकृत संभुतन विमल विभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥

वह पुण्यरुपी शिवजी के शरीर पर शोभित पवित्र विभूति अथवा ऐश्वर्य है और सुन्दर कल्याण और आनन्द उत्पन्न करनेवाली है । वह भक्त के मनरूपी दर्पण का मैल दुर करने वाली और तिलक करने से सारे गुणों को वश मै करने वाली है ।

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥
दलन मोहतम सो सुप्रकासू । बडे भाग उर आवइ जासू ॥

श्रीगुरुजी महाराज के चरणों के नखों की ज्योति (चमक) मणि-समूह के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण से हृदय मैं दिव्यदृष्टि उत्पन्न होती है । वह सुन्दर प्रकाश अज्ञानरूपी अन्धकार को नाश करने वाला है, अथवा वह अपनें प्रकाश से मोहरूपी अन्धकार का नाश करता ई । उस मनुष्य के वड़े भाग्य है, जिसके हृदय में वह प्रकारा आजाय ।

उघरहिं विमल विलोचन ही के । मिटहिं दोष टुख भवरजनी के ॥
सुझहिं रामचरित मनिमानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥

उसके हृदय मैं आते ही हदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार-रूपिणी रात्रि के सारे दोष और दुःख मिट जाते है । फिर उसको रामचरितरूपी मणि-माणिक्य, जहाँ गुप्त ओर प्रगट जिस खानि के है, दिखाई पढ़ने लगते है ।

जथा सुअंजन अंजि दृग सा साधक सिद्ध सुजान ।
कौतुक देखहिं सैल वन भुतल भूरि निधान ।।१ ।। 

जिस प्रकार साधक, सिद्ध और बुद्धिमान-जन उत्तम् अंजन नेत्रों मै आँजकर पर्वत, वन और भूमि के भाँति-भाँति के कौतुक देखते हैं ।।१।।

गुर पद रज मृटु मंजुल व्यंजन । नयन अमिअ' दृग दोष विभंजन ॥
तेहि करि विमल विवेक विलोचन । वरनउँ राम चरित भव मोचन ॥

गुरु के चरणकमल, की धूलि सुन्दर और सरस नयनामृताञ्जन के समान नेत्र के सारे दोषों को दूर करने वाली है । उसी अञ्जन से विवेकरूपी नेत्रों को

............ १. अमृत ।