पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१८

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| बाल-लाइ ६ ३१५ ॥ स्यामल गौर धरे धनु भाथा' ॐ वय किसोर कौसिक मुनि साथी ) पहिचानहु तुम्ह' कहहु सुभाऊ ॐ प्रेम विवस पुनि पुनि कह राऊ । | वे साँवले और गोरे शरीर के हैं, हाथों में धनुष और तरकस लिये रहते हैं, | राम किशोर अवस्था है, विश्वामित्र मुनि के साथ हैं। तुम उनको पहचानते हो तो । उनका स्वभाव बताओ । राजा प्रेम के वश बार-बार यही कह रहे हैं। जा दिन तें सुनि गए लेवाई ॐ तव ते आजु साँचि सुधि पाई कहहु विदेह कवन विधि जाने ॐ सुनि प्रिय वचन दूत मुसुकाने जिस दिन से मुनि उन्हें लिवा ले गये, तब से आज ही हमने सच्ची खुशी पाई है। कहो तो, महाराज जनक ने उनको किस प्रकार पहचाना ? यह प्रिय वचन ॐ सुनकर दूत मुसकुराये ।। होम | सुनहु महीपति झुकुट मनि तुम्ह सस धन्य न कोउ। उनले 4GB रानु लषलु जिन्हकेतनय बिस्व बिभूषन दोउ॥२९.१॥ दूतों ने कहा-हे राजाओं के मुकुट-मणि, महाराज ! सुनिये । आपके ए। समान धन्य और कोई नहीं है, जिनके राम-लक्ष्मण जैसे पुत्र हैं, जो विश्व के भूषण हैं। पूछन जोशु न तनय तुम्हारे छॐ पुरुपसिंघ तिहुँ पुर उँजियारे जिन्ह के जस प्रताप के आगे ॐ ससि मलीन रवि सीतल लागे । | आपके पुत्र पूछने योग्य नहीं हैं वे पुरुषों में सिंह के समान और तीनों ने हैं लोकों के प्रकाश-स्वरूप हैं। जिनके यश के आगे चन्द्रमा मलिन और प्रताप के आगे सूर्य शीतल लगता है। ॐ तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे ॐ देखिअ रवि कि दीप कर लीन्हे। राम) सीय स्वयम्बर भूप अनेका ३ सिमिटे सुभट एक ते एका हे नाथ ! उनके लिये आप कहते हैं कि उन्हें कैसे पहचाना ? क्या सूर्य एम) को हाथ में दीपक लेकर देखा जाता है ? सीता के स्वयंवर में अनेकों राजा और है एक से एक बढ़कर वीर योद्धा एकत्र हुये थे । ए संभु सरासनु काहु न दारा ॐ हारे सकल वीर वरिया।। में तीन लोक सहँ जे भट सानी ॐ सभ कै सकति संभु धनु भानी' १. तरकस । २. एकत्र हुये। ३. तोड़ दी, कह दी ।।