पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२६

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के बैठने में सुखदायक तामझाम और रथ आदि। श्रेष्ठ ब्राह्मणों के समूह उन पर चढ़कर चले, मानो वेद के सब छन्द ही शरीर धारण किये हुये हों। मागध सूत बंदि गुन गायक ॐ चले जान चढि जो जेहि लायक ए वेसर' ऊँट वृषभ वहु जाती ॐ चले वस्तु भरि अगनित भाँती | मागध, सूत और बन्दीजन ( भोट ) जो गुण-गान करने वाले हैं, वे सत्र । जो जिस योग्य थे, वैसी सवारी पर चढ़कर चले । बहुत जातियों के रखचर, ऊँट और बैल बहुत प्रकार की वस्तुयें लाद-लादकर चलें ।। । कोटिन्ह काँवरि चले कहारा ॐ विविध वस्तु को वरनै पारा चले सकल सेवक समुदाई के निज निज साजु समाजु वनाई | कहार करोड़ काँवरें लेकर चले। उनमें तरह-तरह की इतनी चीजें हैं, जिनका वर्णन कौन कर सकता है। सब सेवकों के समूह अपनी-अपनी साज समाज बनाकर चले। रामे , सब के उर निर्भर हरषु पूति पुलक सरीर ।। | कवहिं देखिव नयन भरि रास लषन दोउ बीर ३०० सबके हृदयों में अपार हर्ष उमड़ रहा है और शरीर पुलकायमान हैं। (सब सोच रहे हैं कि) कब हम राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को आँख भरकर देखेंगे । गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा ॐ रथ रव बाजि हिंस चहुँ ओरा रामे) निदरि घनहिं धुम्मरहिं निसाना छ निज पराइ कछु सुनिअ न काना ने हाथी चिंघाड़ रहे हैं। उनके वन्टों को बड़ी प्रचंड ध्वनि हो रही हैं। राम) चारों ओर रथों की घरघराहट है और घोड़े हिनहिना रहे हैं। नगाड़े बादलों की ने है गरज का तिरस्कार करके गम्भीर ध्वनि से बज रहे हैं। किसी को अपनी-परायी । राम कोई बात कानों से सुनाई नहीं दे रही है। । महा भीर भूपति के द्वारे ॐ रज होइ जाइ पपान' पवारे ए चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारी ॐ लिएँ आरती मंगल थारी राजा दशरथ के द्वार पर इतनी बड़ी भीड़ हो रही है कि वहाँ पत्थर फेंका * जाय तो वह भी पिसकर धूल हो जाय । स्त्रियाँ मंगल-थालों में आरती लिये हुये अटारियों पर चढ़ी हुई देख रही हैं। १. खच्चर । २. अच्छी तरह भरा हुआ। ३. पत्थर ।