पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ॐ ३६८ , टिना है जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा ॐ सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा । राम) विष साधु सुर पूजत राजा ' करत राम हित मङ्गल काजा रामो । मुनि ने जिसको जिस काम के करने की आज्ञा दी, उसने वह काम है राम) ( इतनी जल्दी किया कि ) मानो वह पहले ही कर रखा था। राजी ब्राह्मण, साधु और देवताओं को पूज रहे हैं और रामचन्द्र के हित के लिये मंगल-कार्य राम कर रहे हैं। । सुनत राम अभिषेक सुहावा ॐ बाज गहागह। अवध बधावा । राम सीयतन सगुनः जनाए 9 फरकहिं मङ्गल अङ्ग सुहाए रामचन्द्रजी के राज्याभिषेक की सुहावनी खबर सुनते ही सारी अयोध्या भर में धूम-धाम से बधावे बजने लगे । रामचन्द्र और सीता के शरीर में भी शुभ शकुन प्रकट हुये। उनके सुन्दर मंगल अंग फड़कने लगे। के पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं ॐ भरत आगमनु सूचक अहहीं म भए बहुत दिन अतिः अवसेरी' 8 सगुन प्रतीति भेंट प्रिय: केरी .: पुलकायमान होकर वे दोनों प्रेम सहित आपस में कहने लगे-ये राम) शकुन भरत के आने की सूचना देने वाले हैं। उनको ( मामा के घर ) गये बहुत कै दिन हो गये; मिलने की बड़ी उत्कंठा है। इसलिये इन शकुनों से प्रिय के राम मिलने का विश्वास हो रहा है। ॐ भरत सरिस प्रिय को जग माहीं ॐ इहह सगुन फलु दूसर नाहीं । एम् रामहिं बन्धु सोच दिन राती ॐ अंडन्हि कमठ हृदउ जेहि भाँती - जगत् में भरत के समान हमें कौन प्यारा है ? शकुनों का यही फल है, युवा दूसरा नहीं । रामचन्द्रजी को अपने भाई भरत का रात-दिन ऐसा सोच रहता है। है, जैसा कछुए के हृदय को अंडों की चिंता रहती है। ( कहा जाता है कि कछुआ अपने अंडों को दूर रखकर हृदय की तरंगों से सेता है।) । एहि अवसरं मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु । म • सोभत लखि बिधु बढत जनु बारिधि बीचि विलासु ७ ... इस अवसर पर इस परम मंगल समाचार को सुनकर सारा रनिवास इस तरह हर्षित हो उठा, जैसे चन्द्रमा को देखकर समुद्र में लहरों का विलास * १. चिंता, उत्कंठा, प्रतीक्षा । २. हर्षित हुआ । ३. लहर।