पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०३

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। ४०२ . त म . ॐ हाट वाट घर गली अथाई ॐ कहहिं परसपर लोग लुगाई के रामो कालि लगन भलि केतिक. बारा ॐ पूजिहि विधि अभिलाषु हमारा बाज़ार, रास्ते, घर और गली तथा अथाइयों ( बैठकों ) में जहाँ-तहाँ स्त्रीराम पुरुष इकड़े होकर आपस में कह रहे हैं कि कल ही तो वह शुभ लग्न है, अब राम्। देरी ही क्या है ? विधाता हमारी इच्छा पूरी करेंगे। एम् कनक सिंघासन सीय समेता की बैठहिं रामु होइ चित चेता' एमा सकल कहहिं क्व होइहि काली ॐ विघन मनावहिं देव कुचाली * जब सीता-सहित रामचन्द्रजी सुवर्ण के सिंहासन पर विराजेंगे और हमारी के ॐ मनोकामना पूरी होगी । सब यही कह रहे हैं कि कल कब होगी; पर कुचाली ॐ ( षड्यन्त्री ) देवता विघ्न मना रहे हैं। राम तिन्हहिं सुहाइ न अवध वधावा ॐ चोरहिं चंदिनि राति न भावा लामो ॐ सारद बोलि विनय सुर करहीं ॐ बारहिं बार पाँय लै परहीं हैं। उन ( कुचक्री ) देवताओं को अवध के बधावे नहीं सुहा रहे हैं, जैसे चोर । * को चाँदनी रात अच्छी नहीं लगती। सरस्वती को बुलाकर देवता विनय कर रहे * हैं और बार-बार पैरों पड़ते हैं। [ पहली पंक्ति में प्रतिवस्तूपमा तया दृष्टांत अलंकार ] । राम र बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु। लामो रामु जाहिं बन राजुतजि होइ सकल सुरकाजु॥११॥ हे माता ! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिए, जिसमें रामचन्द्र राज्य को छोड़कर बन को चले जायें और देवताओं के सब कार्य ॐ सिद्ध हों। सुनि सुर विनय ठाढ़ि पछिताती ॐ भइउँ सरोज विपिन हिम राती ॐ देखि देव पुनि कहहिं निहोरी ॐ मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी देवताओं की विनती सुनकर सरस्वती खड़ी-खड़ी पछता रही हैं कि हाय ! । मैं. कमल-वन के लिये पाले की रात हुई। देवता उनको इस प्रकार पछताते * एम् देखकर, खुशामद करके फिर बोते-हे माता ! इसमें आपको ज़रा भी दोष । न लगेगा । [ पहली पंक्ति में ललित अलंकार ] १. सोचा हुआ ।