पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६१

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| ५८ ८चना । मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत। हैं। रामो समुझी नाहं तास बालपन तब अति रहेउँ अचेत।३०। राम्रो फिर वही कथा मैंने अपने गुरुजी से शूकरक्षेत्र में सुनी थी । परन्तुं तब बालकपन के कारण मैं बहुत नादान था, इसी से उसे भली भाँति मैंने समझा नहीं। हैं। श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम के गूढ़। म किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़।३०४(२) । । राम की कथा बड़ी ही गूढ़ है, इसके लिये बक्ता और श्रोता दोनों पूरे * ज्ञानी होने चाहियें । मैं कलियुग के पापों में फंसा हुआ महामृढ़, जड़ जीव ॐ उसको कैसे समझ सकता था ? तदपि कही गुर वारहिं बारा ॐ समुझि परी कछु मति अनुसार राम भाषावद्ध करवि मैं सोई $ मोरे मन प्रबोध जेहि होई |. तो भी गुरुजी ने बार-बार कथा कही, तब अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ रामू समझ में आई । उसी को अब मैं भाषा में कहूँगा, जिससे मेरे मन को ॐ सन्तोष हो। 'जस कुछ बुधि बिवेक चल मेरे ॐ तस कहिहौं हियँ हरि के प्रेरे । निज संदेह मोह भ्रम हरली ॐ करउँ कथा व सरिता तरनी होम हैं। जैसा कुछ मुझमें बुद्धि और ज्ञान का बल है, मैं हृदय में हरि की प्रेरणा | मे से उसी के अनुसार कहूंगा । मैं अपने सन्देह, अज्ञान और भ्रम को हरने वाली राम) ॐ कथा रचता हूं, जो संसार-रूपी नदी के लिये नाव के समान है। एमी बुध विस्राम सकल जन रंजन ॐ रामकथा कलि कलुष विभंजनि लामो है रामकथा कलि पन्नग' भरनी ॐ पुनि विवेक पावक कहुँ अरनी राम-कथा पण्डितों को विश्राम देने वाली, सब मनुष्यों के मन को प्रसन्न हैं। करने वाली और कलियुग के पापों को नाश करने वाली है। राम-कथा कलियुग- ३ १. कसँगा । २. साँप । ३. मोरनी । ४. लकड़ी । एक प्रकार का जंगली वृक्ष, जिसे गनियार . म और अगेथु भी कहते हैं। इसकी सूखी लकड़ी चिसने से तुरन्त आग पैदा होती हैं, और मसाल , राम . के की तरह जलती हैं।