पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७१

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मि--राम -राम -राम -राम- राम -राम- राम)-**-राम-राम-राम)-*-राम) ६८. शचना । है और जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियों का विहार है। सुन्दर मन माली राम) है, वह स्नेहरूपी जल से सुन्दरः नेत्रों द्वारा उन्हें सींचता है। [ द्वितीय उल्लेखः । अलंकार ] जे गावहिं यह चरित, सँभारे ॐ तेइ एहि ताल, चतुर रखवारे सदा सुनहिं सादर नर नारी के तेइ सुर वर मानस अधिकारी राम) जो लोग इस चरित को सावधानी से गाते हैं, वे ही इस तालाब के चतुर राम रखवाले हैं। जो स्त्री-पुरुष इसको आदर-पूर्वक सदा सुनते हैं वे ही इंस सुन्दर (राममानसरोवर के अधिकारी श्रेष्ठ देवता हैं। ॐ अति खल जे विषई बक कागा $ एहि सर निकट न जाहिं अभागा । संबुक भैक सेवार समाना ॐ इहाँ न बिषय कथा रस नाना जो अत्यन्त दुष्ट और लम्पट हैं, वेही बगुले और कौवे हैं। वे अभागे इस ( रामचरितमानस ) सरोवर के पास नहीं जाते। क्योंकि यहाँ घोंघे, मेंढक और सेवार के समान विषय-रस की नानी कथायें नहीं हैं। । तेहि कारन आवत हियँ हारे ॐ कामी झाक बलाक विचारे । रोमो आवत एहि सर अति कठिनाई ॐ राम कृपा विनु आई न जाई लामो इसलिये बेचारे कौवे और बगुले-रूपी विषयी लम्पट लोग यहाँ आते हुये राम) हृदय में हार मान जाते हैं। इस सरोवर तक आने में बड़ी कठिनाइयाँ हैं । (राम) रामचन्द्रजी की कृपा के बिना यहाँ आया नहीं जाता। रामो कठिन कुसंग कुपंथ कराला ॐ तिन्हके बचन बाघ हरि व्याला' (राम) गृह कारज नाना जंजाला % तेइ अति दुर्गम सैल विसाला वन बहु विषम मोह मद माना ॐ नदी कुतर्क भयंकर नाना | कठिन कुसंग ही भयानक बुरा रास्ता है और उनं (कुसंगियों ) के वचन • ही बाघ, सिंह और साँप हैं। घर के काम-काज और गृहस्थी की भाँति-भाँति की उलझनें ही बड़े-बड़े अगम पर्वत हैं। मोह, मद और मान ही बहुत-से गहन । वन हैं और तरह-तरह के कुतर्क ही भयंकर नदियाँ हैं। सम्) - जे श्रद्धा संबल' रहित नहिं संतन्ह कर साथ। ॐ तिन्ह कहँ मानसअगम अति जिनहिं न प्रियरघुनाथ १. साँप ! २. राह-खर्च ।