पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८१

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ॐ ७८ छरिन् । । राम की कथा चन्द्रमा की किरणों के समान है, जिसे सन्तरूपी चकोर का पान करते हैं। ऐसा ही सन्देह पार्वती जी ने भी किया था। तब महादेवजी ने ॐ उनसे विस्तारपूर्वक कहा था। एम् कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा सम्भु सम्बाद। एमा भयेउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद। ) : मैं अब अपनी बुद्धि के अनुसार उमा और शिवजी का संवाद कहता हूँ। राम वह जिस समय और जिस हेतु से हुआ, हे मुनि ! उसे सुनो, तुम्हारा विषाद नेष्ट रामो हो जायगा। सुम्मा एक वार त्रेता. जुग, माहीं ॐ संभु गए कुभज ऋषि पाहीं राम * संग सती. जगजननि भवानी ॐ पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी . एक बार त्रेता युग में शिवजी अगस्त्य ऋषि के पास गये थे। उनके साथ ॐ जगतजननी सतीजी भी थीं। ऋषि ने उनको सारे जगत् का ईश्वर जानकर उन * * का पूजन किया। रामकथा मुनिबर्ज बखानी ॐ सुनी महेस परम सुखु मानी रिषि पूछी हरिभगति, सुहाई ॐ कही संभु अधिकारी पाई है राम मुनिवर अगस्त्य ने राम-कथा विस्तार से कही, जिसे शिवजी ने बहुत सुख . मानकर सुना । फिर ऋषिजी ने शिवजी से सुन्दर हरि-भक्ति पूछी और शिवजी के ने उनको अधिकारी पाकर ( भक्ति की सब बातें ) कहीं । कहत सुनत रघुपति गुन गाथा ॐ कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा' । - मुनि सन विदा माँगि त्रिपुरारी ॐ चले भवन संग दच्छकुमारी | रामचन्द्रजी के गुणों की कथा कहते-सुनते शिवजी कुछ दिनों तक वहाँ के * रहे। फिर मुनि से विदा माँगकर शिवजी दक्ष की कन्या भवानी के साथ घर के रोम (कैलाश) को चले। ॐ तेहि अवसर भंजन महिभारा ॐ हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा राम पिता बचन तजि राजु उदासी ॐ दंडक बन विचरत अबिनासी उन्हीं दिनों पृथ्वी का भार उतारने के लिये विष्णु भगवान् ने रघुकुल में है १. शिव ।