राष्ट्रभाषा पर विचार "संस्कृताख्या च गौरी" और 'च' की व्याख्या करते हैं "चकारात् पूर्वोक्तटक्कभाषाग्रहणम् (वही, अष्टादश पाद) मार्कंडेय की भाँति शेषकृष्ण (१६ वा शती) भी यही कहते हैं- "श्राभीरिका प्रायिक भकट्ठादि, कर्णाटिका रेफविपर्ययेण । देशीपदान्येव तु मध्यदेश्या, स्याद्गौर्जरी संस्कृतशब्दभूम्नि ॥" (इं० ए० १९२३, पृ०७) 'संस्कृतशब्दभूस्लि' एवं 'संस्कृताध्या' से स्पष्ट है कि गौर्जरी संस्कृतनिष्ठ भाषा है। उधर उसकी सहेली टाकी के बारे में कहा जाता है- "टाको स्यात्संरकृतं शौरसेनी चान्योन्यमिश्रिते। अन्योः सकारादि- त्यर्थः । इयं चूतकारवणिगादिभाषा ।" (घोडश पाद) माकडेय के इस कथन की पुष्टि मृच्छकटिक की पृथ्वीधरी टीका करती है। उसमें आरंभ में ही कहा गया है-'टकभाषा- पाठको माथुरद्यूतकरौ।" तो 'टाकी' के प्रसंग में भूलना न होगा कि वह 'विभाषा' ही नहीं अपभ्रंश' भी है अर्थात् वह केवल वर्गभाषा ही नहीं देशभाषा भी है । फलतः टाकी 'अपभ्रंश' के विषय में शेषकृष्ण लिखते हैं- टाकी पुरा निगदिता खलु या विभाषा सा नागरादिभिरपि त्रिमिरन्विता चेत् । तामेव टक्कविषये निगदन्ति टक्का- पभ्रंशमत्र तदुदाहरणं गवेष्यम् ॥” (वही, ६) इस प्रकार हम देखते हैं कि गौर्जरी और टाकी नागरापभ्रंश पर आश्रित हैं ! अर्थात् गूजरी का रहस्य जानने के लिये टक्की एवं
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