पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१००

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आस्तीनके ये साँप ८७ सम्प्रदायवादियोका जोर शहरोमें और कस्बोंमे रहनेवाली शिक्षित मध्यम श्रेणी तथा अशिक्षित आवारा श्रेणीको अगर काग्रेसने अपनानेका प्रयत्न नही किया तो ये लोग इन प्रतिक्रियागामियोकी चालवाजीके शिकार होगे । ये ही वर्ग पश्चिममे भी फैसिस्ट आन्दोलनकी खास ताकत रहे है । इन वर्गोमे फैली हुई भीपण वेकारी इन वर्गोके नवयुवकोको सम्प्रदायवादियोके चंगुलमे फँसनेको मजबूर करेगी। अपनी अशिक्षाके कारण अपनी आर्थिक दुर्दशाके कारणोको न समझ सकने और जिन अवस्थानोमे वे काम करते है उनकी बदौलत उनमे आगामी चेतनाका विकास न होनेके कारण वे औरोके मुकावले आसानीसे गलतफहमीके शिकार बनाये जा सकते है । किसानोकी माँगोको लेकर तो कांग्रेस आन्दोलन करती आयी है, पर शहरके इन तवकोकी ओर अभीतक उसका ध्यान नहीं गया है। शहरोमे काग्रेसका काम अवतक सिर्फ सभाएँ करके प्रस्ताव पास कर देना और मौके-बे-मौके जलूस निकाल देना भर ही है, लेकिन यह कार्यक्रम विलकुल ही अधूरा है । हमे शहरके उपर्युक्त वर्गोकी रोजमर्राकी आर्थिक मॉगोको लेकर उनके लिए आन्दोलन करना होगा। तभी हम इनकी सक्रिय सहानुभूतिको अपने साथ ला सकेगे, इनमे वास्तविक चेतनाका विकास कर सकेगे और व्यवहार रूपमे यह सिद्ध करके दिखा सकेगे कि आज जो साम्प्रदायिक नेता उनके हिमायती वन रहे है वे सच्चे सवालोके सामने आनेपर भाग खडे होते है और उनका वास्तविक उद्देश्य अपने वर्गका स्वार्थ-साधन है । साम्प्रदायिक उपद्रवोके समय शान्ति वनाये रखने तथा राष्ट्रीय आन्दोलनके कार्यको आगे वढानेके लिए हमे स्वयसेवकोका दल हर शहर और देहातमे कायम करना होगा। कितने ही नौजवान साम्प्रदायिक संस्थानोमे इसलिए भर्ती हो जाते है कि वहाँ वे स्वयं- सेवकसेनामे भर्ती होकर एक प्रकारका मानसिक सन्तोप प्राप्त करते है । ऐसे लोगोका भी हमे ध्यान रखना आवश्यक है । अन्तमे, इस प्रसंगमे यह कहना भी बहुत आवश्यक है कि आजकी हालतमे जबकि स्थिरस्वार्थी वर्ग काग्रेस विरोधी मोर्चेको सुदृढ कर रहे है, काग्रेसकी भीतरी एकताको वनाये रखना हमारे लिए पहलेसे भी ज्यादा जरूरी हो गया है। विचारधारा तथा दृष्टिकोणकी विभिन्नता होनेपर भी काग्रेसके भीतर सभी समूहोको कन्धेसे कन्धा भिडाकर चलना चाहिये । हमारी आपसी फूटसे हमारी राष्ट्रीय सस्था और राष्ट्रीय आन्दोलनकी ताकत कमजोर होगी, विरोधियोंको जनताको भ्रममे डाल रखने और उसे गलत रास्तेपर ले जानेमे सहायता मिलेगी। साथ ही हमारे भीतर स्वय अवसरवादको प्रोत्साहन मिलेगा। आजकल काग्रेस जिस प्रकार वामपक्ष और दक्षिणपक्षका अखाडा-सा बना चाहती है उससे हमारा राष्ट्रीय आन्दोलन छिन्न-भिन्न हो जायगा और साम्राज्यशाहीसे सफल मोर्चेकी तैयारी एक अर्सेके लिए टल जायगी। श्री सुभाषचन्द्र बोसपर कार्य-समितिने अनुशासन- भग करनेके लिए जो कडी काररवाई की है उससे यही जान पडता है कि इस वढते हुए साम्प्रदायिक खतरेके नये स्वरूपकी ओर हमारे नेताअोका ध्यान नहीं है । हम काग्रेसके दक्षिण और वाम दोनो पक्षोके नेताअोसे और खासकर गाधीजीसे यह अनुरोध करते है