राष्ट्रीयता और समाजवाद बुद्धिको कसोटीपर कसकर ही तथ्यका निर्णय हो सकता है । अकारण सवपर अविश्वास और सन्देह करनेसे कोई लाभ नहीं होता और राजनीतिक जीवन भी कटु और दुखद हो जाता है। हमको वस्तुस्थितिको ठीक-ठीक समझकर ही अपना कर्तव्य निर्धारित करना चाहिये । वस्तुस्थिति यदि प्रतिकूल है तो उसको यथासाध्य वदलनेकी चेप्टा करनी चाहिये किन्तु जो अपरिहार्य है उसके लिए शोक करनेसे क्या लाभ । अाजकी स्थिति यह है कि जबतक मनत्र कांग्रेस आगे नहीं बड़ती और गाधीजी आगे नहीं बढते तवतक कोई नभावशाली राष्ट्रव्यापी आन्दोलन नही हो सकता । कांग्रेसकी नौतिकी घोपणा हो चुकी है। उसपर अकारण सन्देह करना अनुचित है और अपनी शक्तिको क्षीण करना है। कांग्रेसको अग्रसर करनेका प्रत्येक उपाय करना चाहिये । वह पानेवाले संग्रामकी तैयारीमे लगनेसे ही होगा, एक दूसरेको दोपी ठहराने से नही । सम्मेलनका उद्देश्य समझौता विरोधी सम्मेलनके सम्बन्धमे सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि इसका गूढ उद्देश्य हमको काग्रेसकी विनरोगसंस्था बनाना है । मुभाप वावू १० फरवरीके 'फारवर्ड ब्लाक के अंकमे लिखते है कि काग्रेसमें सलाईन या गयी है, इसे हमें रोकना है । उनका कहना है कि काग्रेम समझौते कर लेगी और इस तरह कांग्रेस नामका उपयोग करनेके हकको खो वैठेगी, क्योकि वह ऐसा करके अपने आदर्शसे भ्रष्ट हो जावेगी। इस समय वामपक्ष ही कांग्रेसका वास्तविक कर्णधार होगा और उसको दक्षिण पक्षके लोगोको कांग्रेससे पृथक् करनेका अधिकार होगा । उनको डर है कि दक्षिण पक्ष कांग्रेसमें अपने फर्जी बहुमतके वलपर काग्रेमसे न निकलेगा और उस समय कांग्रेसके दो टुकड़े हो जावेगे और जनताको फैसला करना होगा कि वह किमको अपनावे । वह एक मुकावलेकी दूसरी कांग्रेस खडी करना चाहते है । आजकी कांग्रेसमे उनको बैठनेका हक नहीं है, इसलिए वह अपनी दूसरी कांग्रेस बनानेकी फिक्रमे २८ फरवरीके ग्रंकमे वह लिखते हैं कि “रामगढ़ कांग्रेसके बारेमे यदि वामपक्षी परेशान न हो तो उससे आसमान फूट न पड़ेगा। अच्छा हो यदि वह रामगढ कांग्रेसको शुद्ध दक्षिण-पक्षकीकांग्रेस बनाने में सहायता दें। इस साल कांग्रेस पण्डालके बाहरकी घटनाएं अधिक जरूरी होंगी। रामगढ़में अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन होने जा रहा है । यदि इसको सफलता मिली तो राजनीतिक दृष्टिसे कांग्रेसके महत्त्वको यह ढक देगा' यह शब्द विचारणीय है। इससे स्पप्ट है कि मुनाप बाबू काग्रेसके महत्त्वको घटाना चाहते है और उसको क्षीण और नष्ट कर एक प्रतिद्वन्द्वी संस्था खड़ी करना चाहते है । मुनाप बाबू काग्रेसके प्रति सदा अपनी अटल श्रद्धा प्रगट किया करते थे। उनका झगड़ा 'हाई कमाण्ड' से था, न कि काग्रेससे । ग्रारम्भमे वह गाधीजीको भी इस झगड़ेने अलग रखते थे, उनके लिए आदरका भाव था। उन और वकिंग-कमेटीके सदस्योमे वह फर्क किया करते थे। धीरे-धीरे यह फर्क भी मिट गया है और काग्रेसके प्रति वह अपनी पुरानी श्रद्धा भी खो बैठे है । कोई भी व्यक्ति चाहे कितना बड़ा क्यो न हो कांग्रेस सस्थासे छोटा है। हम व्यक्तिके पुजारी नही है ।
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