पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१०८

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समझौता विरोधी सम्मेलन १५ कमेटीने तो अपनी स्थिति स्पप्ट कर दी है । हम इस हालके प्रस्तावके हवालेसे ही समझौता करनेवालोका मुँह वन्द कर सकते है । समझौते और सौदा करनेकी प्रवृत्तिको हम उचित उपायोका अवलम्वन करके ही दवा सकते है । गाली-गलौजसे यह काम सिद्ध होनेवाला नही है। उससे तो उल्टे काम विगडता है । एक ओर जहाँ हमारा कर्तव्य है कि हम इस प्रवृत्तिको रोके दूसरी ओर हमको यह भी चाहिये कि सग्रामकी तैयारी करे । जन- अान्दोलनको पुष्ट करके ही हम साम्राज्यविरोधी शक्तियोको वढा सकते है । इसी प्रकार वह वातावरण प्रस्तुत हो सकता है जिसके होते हुए राष्ट्र और काग्रेस अपने ग्रादर्शसे भ्रष्ट नही हो सकती । इसके लिए अविश्वास और सन्देहका वातावरण घातक है । वरावर. यह कहनेसे कि काग्रेस लडेगी नही और हमारे नेता सुलहके लिए उत्सुक है हम काग्रेसके प्रति जनतामे अविश्वासको बढाते है । इसका परिणाम यह होता है कि जनता निस्त्साह हो जाती है और युद्धकी तैयारीसे हट जाती है । ऐसी शिक्षा और प्रचारका एक ही परिणाम होता है कि कार्यकर्ता असली कामसे हट जाते है । वह केवल अपने नेतानोको अपशब्द कहकर अपनी उग्रताका परिचय देना पर्याप्त समझते है । नेताअोकी पोल खोलनेके प्रयत्नमे वह अपनी ही पोल खोलते है । जो लोग इसपर विश्वास करनेको तैयार हो जाते है कि काग्रेस नही लडेगी वह इसपर विश्वास सहसा नहीं करते कि सुभाप वावू और उनका दल लडेगा और यदि ऐसा विश्वास भी करते है तो भी यह वात उनके मनमें नहीं बैठती कि केवल उनके लडनेसे कोई देशव्यापी प्रभावशाली आन्दोलन हो सकता है । सुभाप वावूने ब्रिटिश गवर्नमेण्टको चेतावनी दी है कि देश वर्किंग कमेटीके साथ नही है इसलिए उन्हे उससे किसी प्रकारका समझौता नही करना चाहिये । किन्तु देश जानता है और गवर्नमेण्ट जानती है कि किसके ग्राह्वानपर राष्ट्र क्रान्तिपथपर अग्रसर हो सकता है। नतीजा यह होता है कि इस शास्त्रार्थसे केवल विरोधियोकी ही शक्ति बढती है, कुछ राष्ट्रीय कार्यकर्ता गलत रास्ता पकड लेते है, प्रस्तुत कार्यसे पराडमुख हो मौखिक शास्त्रार्थको ही राष्ट्रकी सबसे बडी सेवा समझते है । इस समय विचारकी बडी अस्त-व्यस्तता है। लोगोके दिमाग साफ नही है, विविध प्रश्नोमे वह उलझे हुए है । हरएक अपनी ओर घसीटता है और सवसे वडा उग्रवादी होनेका दावा पेश करता है । शब्दोका मायाजाल भी विचित्र है। 'स्लोगन' और नारे बड़े प्रभावशाली होते है । यदि नारे ठीक हुए तो यह वडा अनर्थ भी करते है। इसलिए स्लोगन देनेका काम बडी जिम्मेदारीका है । आजकल तरह-तरहके नारे चल पडे है। यह वर्तमान अस्त-व्यस्तताको और भी बढाते है । एक ही वातको बार-बार दुहरानेसे लोग उसकी सच्चाईके कायल हो जाते है । आजकल इस तरहका गलत प्रोपेगेडा (प्रचार) वहुत हो रहा है । जो इस कलामे जितना ही सिद्धहस्त हो उसे उतनी ही तात्कालिक सफलता मिलती है । इसे कौन पूछता है कि सत्यता किधर है । सत्य भी मौजूद रहकर आज विजयी नहीं रह सकता, उसको भी अपने प्रचारके लिए व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसी हालतमे हमारी राष्ट्रीय कमेटियोको ठंडे दिलसे सव वातोपर विचार करना चाहिये और छानबीन करके ही किसी निर्णयपर पहुँचना चाहिये केवल जोशसे कुछ नही होता है ।