पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/११५

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१०२ राष्ट्रीयता और समाजवाद 'टेक्टिस'का भेद रहेगा। हम राष्ट्रीय विभिन्नतानोंको नहीं मिटा सकते । ऐसा सोचना मूर्खता होगी । हमको मौलिक सिद्धान्तोमे अवस्थानुसार हेर-फेर करना पड़ेगा। प्रत्येक देशका अपना अलग एक ढंग रहता है और अपने ढंगसे ही वह उस मीलिक कार्यको सम्पन्न करता है। यह विशेषता अपनी विशेष अर्थनीति, राजनीति, सस्कृति, धार्मिक विकास प्रादिके कारण हुअा करती है । इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। देशकालके भेदसे नीति बदलती रहती है, इसलिए बिना अपनी अवस्थापर पूरा विचार किये दूसरे देणकी नीतिको अपनाना भयावह होता है । सन् १९३१ मे पृथक् होनेका प्रश्न भी हमारे सामने न था। यह मांग अभी हालसे पेश होने लगी है । उस समय इस अनावश्यक घोपणाको करके एक नया प्रश्न व्यर्थके लिए खड़ा किया गया। इससे केवल गलत विचारोंको सहारा मिलता है और जब वही विचार स्थूल रूप धारण कर लेते है तब उनको दबानेकी कोशिश की जाती है। यह वहुत गलत तरीका है। अभी हालमें जव जिन्ना साहबने काग्रेसके सामने यह मांग की थी कि कांग्रेस मुस्लिम लीगको तमाम मुसलमानोका प्रतिनिधि मान ले उस वक्त कुछ कम्युनिस्ट मुसलमानोंने इस मांगको मान लेनेपर जोर दिया था और यह भी कहा था कि उस हालतमे कांग्रेसके मुसलमान मुस्लिम लीगमे दाखिल हो जावेगे । यह भाई अपने भोलेपनमे समझते थे कि इससे हिन्दू-मुसलिम एकताके लिए रास्ता साफ हो जावेगा । शायद वहाँ जाकर हमारे ये भाई नीचेसे सयुक्त मोर्चेकी नीति ( United frontfrom below ) चलाते। यह इस वातको भूल गये थे कि उस हालतमें कांग्रेस धीरे-धीरे हिन्दू संस्था वन जाती। पहली गलती तो इनकी यह है कि केवल धर्मके आधारपर यह राष्ट्र-निर्माण मानते है। स्टालिनने राष्ट्रकी सबसे बडी पहचान नापाको वताया है । दूसरी गलती यह है कि रूसके इतिहासका ठीक-ठीक अध्ययन किये विना और अपने देगकी स्थितिपर पूर्ण विचार किये बिना ही अपना कार्यक्रम बना डालते है । दूसरेका अनुकरण करनेमे सुविधा अवश्य है, परन्तु हमको यह न भूलना चाहिये कि समाजवादीका मार्ग सुगम नही है, उसकी साधना मुलभ लाभको साधना नहीं है, समाजवाद एक वैज्ञानिक वस्तु है इसलिए समाजवादीकी नीति और कार्यप्रणाली भी वैज्ञानिक होनी चाहिये। थोड़ी देरके लिए यदि यह मान भी ले कि मुसलमानोको स्वभाग्यनिर्णयका अधिकार मिलना चाहिये तो किस तर्कके आधारपर सिक्खोकी ऐसी ही मांगको हम अस्वीकृत कर सकेंगे ? सिखोका भी एक अल्प समुदाय है । ऐसी अवस्थामे सिक्खोको मध्य-पंजावमें एक स्वतन्त्र राष्ट्र वनानेका अधिकार देना होगा । पजावके पूर्वी हिस्सेमे जाट कौम बसती है, वह भी अपनी स्वतन्त्र सत्ता चाहेगी, इसे हम कैसे रोक सकेगे? इस तरह हम देखते है कि उत्तर पश्चिमका मुस्लिम राष्ट्र मुसलिमलीगकी इच्छाके अनुसार न वन सकेगा । राष्ट्रका विस्तार बहुत घटाना पड़ेगा, पर इससे लीगियोंको कैसे सन्तोप