पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१२१

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१०८ राष्ट्रीयता और समाजवाद इसका एक स्तम्भ विदेशी सत्ताका विरोधी है और दूसरा किसानोकी क्रान्ति है। जव पहला स्तम्भ कुछ दुर्वल पडे तब दूसरेको मजबूत करनेकी कोशिग होनी चाहिये । मेरी समाजवादियोसे अपील है कि काग्रेस-अान्दोलनमे पूरा-पूरा भाग लेते हुए वह किसान और मजदूरोके संगठनके कामको भी काफी दिलचस्पीके साथ करें ।' व्यक्तिगत सत्याग्रह और आजादीकी लड़ाई महात्मा गांधीके वक्तव्यपर एक दृष्टि महात्माजीके हालके वक्तव्यसे वडी निराशा हुई । इसलिए नहीं कि व्यक्तिगत सत्याग्रह फिलहाल एक ही व्यक्तितक सीमित रहेगा, किन्तु इसलिए कि उसमे कुछ ऐसे सिद्धान्तोका निरूपण किया गया है जो मेरी अल्पवुद्धिमे हमारे आन्दोलनके लिए घातक है । वक्तव्यसे मालूम होता है कि सत्याग्रहका उद्देश्य केवल भापणकी स्वतन्त्रताकी रक्षा करना है । वम्बईके प्रस्तावमे तथा बम्बईमे दिये हुए महात्माजीके भाषणोमे जो वातें शायद साफ नहीं की गयी थी, वह इस वक्तव्यसे साफ हो जाती है । यह तो शायद स्पप्ट ही था कि आजादीका सवाल इस समय छोड दिया गया है, पर यह स्पप्ट नहीं था कि सत्याग्रहका उद्देश्य लडाईके लिए हिन्दुस्तानके जन-धनके उपयोगको रोकना नहीं है, बल्कि महज अपने अधिकारको जताना है। महात्माजीका वक्तव्य इस बातको स्पष्ट कर देता है। कुछ व्यक्तियोके सत्याग्रहसे कुछ अंशमे यह काम सिद्ध होता है तो वात दूसरी है, पर सत्याग्रहका उद्देश्य यह नही रखा गया है । हिन्दुस्तान इतना बड़ा देश है कि जबतक कार्यकर्तामोकी एक बहुत बडी फौज इस कामको एक साथ न करे तवतक काममे सफलताकी आशा नहीं करनी चाहिये । इसलिए पहले तो व्यक्तिगत सत्याग्रह ही, वह भी जब वहुत थोड़ेसे चुने हुए लोगोमे ही सीमित रखा जाय, इस काममे बढी भारी स्कावट है, फिर जब यह कहा जाता है कि प्रतिपक्षीको जहाँतक हो सके कम परेशान करो, उसके काममे कम-से-कम बाधा डालो तो यह उद्योग वेकार-सा हो जाता है । उद्देश्य केवल अपने अधिकारकी रक्षा करनेका है, कुछ हासिल करनेका नही । काग्रेसके युद्ध-विरोधी प्रस्तावको भी हम इस तरह कार्यान्वित नही करते, राष्ट्रीय मांगको हासिल करनेकी बात तो दूर रही। हम इसके लिए तैयार नहीं थे। यू० पी० की प्रान्तीय काग्रेस कौंसिलने अपनी पिछली बैठकमे जो प्रस्ताव पास किया था उसका क्षेत्र तो अति विस्तृत था। उसमे आजादीका सवाल भी रखा गया था और युद्धके लिए हिन्दुस्तानके जन-धनके इस्तेमाल को रोकनेकी बात भी कही गयी थी। याद रखिये कि यह प्रस्ताव हमने बम्बईके इजलासके वाद पास किया था, पर महात्माजीके वक्तव्यने इस प्रस्तावको निरर्थक-सा बना दिया है अजीव हालत है कि काग्रेसके निश्चयोके असली अर्थका पता बहुत देरमे चलता है ! १. 'संघर्ष' १४ अक्तूबर, १९४० ई०