पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१२०

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सत्याग्रहपर पावन्दियाँ १०७ यदि स्वराज्यके लिए सत्याग्रह शुरू होता तो पाशा की जा सकती थी कि धीरे-धीरे वह देशव्यापी होगा और किसान, मजदूर, छोटे पेशेके लोग भी बड़ी तादादमें उसमे शरीक होगे। उस अवस्थामे देशमे शक्ति रहते असहयोग और सत्याग्रहका पूरा कार्य-क्रम, जिसकी घोपणा सन् १९२१ मे हुई थी, काममे लाया जा सकता था। उसमे विकासकी काफी गुंजाइश होती। जन-आन्दोलनकी हदवरारी भी हमारे नेता न कर सकते, केवल अपने नियन्त्रणमें रखकर गलत रास्ते पर जानेसे उसे बचाते, लेकिन आधार को इतना सकुचित कर देनेसे विकास के सव मार्गोके वन्द हो जानेकी आशंका है। मेरी पहली आपत्ति यह है । दूसरी शका यह उठती है कि युद्ध समाप्त होनेपर क्या होगा ? जो सवाल सत्याग्रहका आधार बनाया जा रहा है उससे तो यही मालूम होता है कि सत्याग्रह भी वन्द हो जायगा, क्योकि जब युद्ध ही न होगा तो उसके विरोधका प्रश्न कहाँ उठता है। मैंने इन शंकाओंको इसलिए उठाया है कि लोग इस सत्याग्रहमे भाग ले और स्वराज्यके लक्ष्यको भी सामने रखे जिसमे विकासका अवसर मिले । ५० जवाहरलालजीका कहना है कि आजादीका सवाल वालायताक नही रखा गया है, किन्तु महात्माजी और सरदार साहव तो ऐसा नहीं कहते । खैर ! यदि पं० जवाहरलालको ऐसा कुछ कहनेका अधिकार है तो सर्वसाधारणको भी है। मै चाहता हूँ कि वम्बईके प्रस्तावका ऐसा ही अर्थ करे और धीरे-धीरे आन्दोलनको एक विराट् जन-अान्दोलनका रूप दे, यदि ऐसा हुआ तो हम क्रान्तिके पथपर बहुत आगे वढेगे । अन्तर्राष्ट्रीय स्थितिपर भी बहुत कुछ निर्भर करता हैं । युद्धके वाद भी क्रान्तिकी अवस्था जारी रहेगी । दुख तो इस वातका है कि इसमे आत्मविश्वासकी कमी है और हम ऐसा वन्दोवस्त चाहते है जिसमें किसी प्रकारकी जोखिम न उठाना पड़े, इसीलिए यह हिचकिचाहट है और आन्दोलन शुरू करनेमे इतनी देर हो रही है, पर क्रान्तिकारियोको इस तरह न घवराना चाहिये । यदि जन-आन्दोलनके जीवन-मरणका प्रश्न न होता तो मै इस प्रकारके सत्याग्रहका समर्थन न करता । काग्रेसकी खामोशीसे जन-आन्दोलनको कड़ा धक्का पहुँचेगा, पर जननायकोकी मनोवृत्तिका अध्ययन करने और काग्रेस-सगठनको दुर्वलतानोका पता चलनेका यह अच्छा मौका है । इससे आगेके लिए हम सबक सीख सकते है । यह वात हमे न भूलनी चाहिये कि बिना जोखिम उठाये कोई वड़ा काम नही हो सकता। हम समझते है कि आनेवाले जमानेमे हमको किसानो और मजदूरोके सगठन पर और अधिक जोर देना पड़ेगा । समाजवादी पार्टी इसपर काफी जोर दे रही है, पर अव इस ओर और ज्यादा ध्यान देनेकी आवश्यकता है । यदि सत्याग्रहको शक्तिशाली बनाना है तो किसानो और मजदूरोको साम्राज्य-विरोधी संघर्पमे खीचना पडेगा। इसके लिए किसान सभा और मजदूर-सभाका काम बड़े पैमानेपर करना पडेगा अन्यथा इन वर्गोमे निश्चेष्टता या जावेगी और वह हमारे आन्दोलनसे बहुत कुछ पृथक् रहेगे । समाजवादियोके मतमे यह पूंजीवादी प्रजा-सत्तात्मक क्रान्ति ( bourgeois democratic revolution ) की मंजिल है ।