पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१३४

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भारतकी स्वाधीनताका सवाल १२१ हो जायें, क्योकि आज यह बहुत जरूरी बात साफ हो जाय कि कौन क्रान्तिकारी है और कौन सुधारवादी । वाकई डाक्टर साहबने हसका काम किया। जिस तरह हस दूधका दूध, पानीका पानी अलग कर देता है उसी तरह डाक्टर साहवने अपने भेडियोको वकरियोसे अलग कर लिया । डाक्टर साहव जब अपनी वक्तृता दे रहे थे उस समय उनके पक्षके विद्यार्थीने यही समझा होगा कि वह विद्यार्थी-सघमे भेद उत्पन्न कर कोई इतिहास-निर्दिष्ट क्रान्तिकारी काम कर रहे है । अव विद्यार्थी-संघपर कब्जा जमाकर यह पालथी-पालथी मारकर बैठेगे और क्रान्तिका इन्तजार करेगे। इनका दुर्भाग्य है कि और संस्थाएँ इनके कब्जेमे नही है और न वह खतम ही हो पाती है । इससे इनके जरिये क्रान्तिके सफल होनेमें जरा शक होता है। लेकिन यह तो अपनी शुद्ध क्रान्ति चाहते है, कोई अधकचरी चीज नहीं । इसलिए कमजोर होते हुए भी यह दूसरोसे सम्मानपूर्वक समझौता नही करेगे। इस घातक मनोवृत्ति- ने हिटलरका उत्थान किया था । जव नाजी सैनिकोकी ताकत वढने लगी तव मजदूरोने उनको अपना दुश्मन समझकर उनका पीछा करना शुरू किया और लड़ाईकी तैयारी करना चाहा । हिटलरने एक लाख भूरी कमीजवालोको जव वलिन वुलाया तव वामपक्षके विभिन्न जिलोके नेतायोने यापसमे परामर्श किया कि ऐसी परिस्थितिमे क्या करना चाहिये । सभी विचारके समाजवादी इकट्ठा थे। वहुतोने सलाह दी कि फौरन आम हड़तालकी घोषणा होनी चाहिये और मजदूरोको लडाईके लिए संयुक्त मोर्चा बनाना चाहिये । लेकिन कम्युनिस्टोने कहा कि हिटलरको आने दो हम उससे समझ लेगे। इस निश्चेष्टताके कारण मजदूरोका लडनेका जोश ठंडा हो गया । जर्मन पार्लमेण्ट ( Reichstag ) को जलवाकर नाजियोने इस वहाने लोगोका दमन करना शुरू किया और इस तरह विद्रोह- की आशापर पानी फिर गया। यह सवसे अकेले ही समझना चाहते है, इसलिए किसीसे नही समझ पाते । इन्होने एक साल कोरी वकवासमे ही निकाल दिया। जनान्दोलनकी सिद्धिके कामकी सर्वथा उपेक्षा की। फारवर्ड ब्लाकको वने अभी दो-ढाई सालसे ज्यादा नही हुए है । इसकी कोई स्पप्ट विचारधारा नही है । काग्रेसके वर्तमान नेतृत्वका विरोध ही इसका मुख्य आधार रहा है। इस कारण तरह-तरहके लोग इसमे सम्मिलित हो गये । इसने स्वतन्त्र रीतिसे सत्याग्रह-संग्राम चलानेकी कोशिश की, पर विफल रहा । अव इन्होने अपनी गलती पहचानी है और ये अपने कामका ढंग बदल रहे है, लेकिन वर्ग-संघटनोमे इनका विशेष फाम नहीं है, और हो भी कैसे सकता है । इसके लिए दो वर्पका समय बहुत थोडा होता है, लकिन हम आशा करते है कि फारवर्ड ब्लाक अपनी नीतिको फिरसे स्पप्ट करेगा और किसान मजदूरोमे काम करनेपर जोर देगा। समाजवादी सयुक्त मोर्चेपर तबतक जोर देते रहे जवतक काग्रेसके नेताग्रोने समझौतेका पस्ताव नही पास किया था। पूनामें समाजवादियोने समझौतेका घोर विरोध किया, क्योकि वह कांग्रेसके प्रस्तावोके विरुद्ध था और उससे जनान्दोलनको ठेस पहुँचती थी। समाजवादी काग्रेस-नीतिका प्रचार करनेके साथ-साथ किसानो और मजदूरोमे भी थोड़ा