पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१३९

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१२६ राष्ट्रीयता और समाजवाद सफलता निश्चित थी। अन्य बुटियोके साथ-साथ यह एक भारी कमी थी जिसकी ओर भी ध्यान देनेकी आवश्यकता है। ९ अगस्त सन्' ४२ हमारे इतिहासमे सदा स्मरणीय रहेगा, किन्तु यदि हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना कर उससे उचित उपदेग न लेंगे और अपनी त्रुटियां और दुबलतायोका अध्ययन कर उनके दूर करनेकी चेप्टा न करेंगे तो हम अगस्त-क्रान्तिका पूरापूरा लाभ न उठा सकेंगे। हमको यह न भूलना चाहिये कि हमने अपने लक्ष्यको अभी नहीं पाया है। ६ अगस्तके दिन हमको इस निश्चयको दुहराना चाहिये पीर उमको कार्यान्वित करनेके लिए दृढ़ संकल्प होना चाहिये ।। मध्यकालीन सरकार इतिहासमे जिस स्थायी क्रान्तिकारी गवर्नमेण्टका उत्लेख मिलता है वह एक भिन्न वस्तु है । उसका निर्माण सफल क्रान्तिके पश्चात् होता है । उसका कार्य राष्ट्रीय विधान परिपदको ग्रामवित करना होता है। वही विधान-परिपटका चुनाव कराती है और इमका प्रबन्ध करती है कि प्रत्येक बालिग पुरुष और स्त्रीको स्वच्छन्द मत देनेका अधिकार हो तथा चुनावमे किसी प्रकारकी अनियमितता न हो । पुनः यही स्थायी गवर्नमेण्ट परिपको राष्ट्रका भावी विधान बनानेका पूर्ण अधिकार देती है । इस गवर्नमेण्ट- का यह भी कर्तव्य होता है कि जब तक नयी गवर्नमेण्ट अस्तित्वमे नहीं आती तबतक वह देशका शासन करे तथा परिस्थितिके अनुसार जनताके हितोकी रक्षाके लिए अधिक-से- अधिक प्रयत्न करे । त्ममे लेनिनके अनुसार स्थायी गवर्नमेण्टको कमसे कम निम्नलिखित कार्यक्रमको कार्यान्वित करना चाहिये था.-निरंकुग शासनका अन्त, लोकतन्त्रकी स्थापना, हर बालिग पुरुष और स्त्रीको वोट देनेका अधिकार, वैलेट द्वारा वोट, व्यक्तिकी स्वतन्त्रता, भापाकी स्वतन्त्रता, प्रेसकी स्वतन्त्रता तथा सभा करनेकी स्वतन्त्रता, राष्ट्रोको स्वभाग्य-निर्णयका अधिकार, मजदूरोंके लिए आठ घण्टेका दिन तथा उनके स्वत्वोकी रक्षाके लिए कानून आदि । यह कार्यक्रम देगकी तात्कालिक परिस्थितिके अनुसार होता है । हमारे यहाँ परिस्थिति ऐसी हुई कि विधान-परिपद् पले वन गयी और मध्य-कालीन सरकार पीछे बनी। किन्तु केवल इससेकोई अन्तर नहीं आता क्योकि यहाँ चुनावमे कोई अनियमितता नहीं हुई। अन्तर चुनावके प्रकारमें है। यहाँ व्यविस्थापिका सभात्रों द्वारा चुनाव हुआ है और इन समायोके सदस्योंका चुनाव बालिग मताधिकारके अाधारपर नहीं हुअा है। यदि मध्यकालीन सरकारका निर्माण पहले हो गया होता तब भी यही स्थिति होती, क्योंकि कांग्रेसने चुनावके इस प्रकारको स्वीकार कर लिया था । यह भी स्पष्ट है कि यहाँकी विधान परिपद् एक ऐसी संस्था नहीं है जिसको पूर्ण अधिकार प्राप्त हों कुछ सिद्धान्त उसके लिए निरूपित कर दिये गये है। इनको माननेके लिए वे वाध्य है १. 'समाज' ८ अगस्त, १६४६ ई०