पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१४२

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स्वाधीनता दिवस और हमारा कर्तव्य १२६ करना चाहिये । आजकी कपडे और अनाजकी समस्याको केन्द्रीय सरकार ही हल कर सकती है। कपडेकी देहातमे वडी कमी है, इस कमीको पूरा करना है। फिलहाल राशनिंग रहना जरूरी है । इस वातकी चेष्टा करते रहना चाहिये कि जितनी जल्दी यह हट जाय उतना ही अच्छा है । जनताको आजकी स्थिति बतलानेकी बड़ी जरूरत है । इङ्गलैण्डमे युद्धके बाद भी राशनिंग जारी है । युद्धकालकी अपेक्षा आज इसमे ज्यादा कडाई है। संसारके खाद्यपदार्थोकी समस्या बडी कठिन है। अमेरिकाने कंट्रोल उठा लिया और इसका परिणाम यह हुआ कि वहाँ वस्तुप्रोकी कीमत वहुत बढ गयी.। इस कारण अमेरिकाने वाहर भेजनेके लिए गेहूँकी खरीद बन्द कर दी है । संसारके अन्य देशोसे हमको अन्न मिलेगा या नही यह अनिश्चित है। हम काफी अन्न पैदा भी नही करते । जनताको यह सव दिक्कते बतानी चाहिये । यह झूठी शान न होनी चाहिये कि हम सब कुछ कर सकते है। एक कठिन समस्या साम्प्रदायिक शान्ति बनाये रखनेकी है । इन सव कामोके करनेके लिए काग्रेस तथा जनताको गवर्नमेण्टपर वरावर दवाव डालते रहना चाहिये तथा उसकी सहायता हर प्रकारसे करनी चाहिये । इन सब कामोसे जनताकी शक्ति बढ़ेगी और यही प्रधान वस्तु है। स्वाधीनता दिवस और हमारा कर्तव्य स्वाधीनता दिवसके अवसरपर सदाकी भांति इस वर्ष भी देशके करोड़ो नर-नारी विदेशी शासनका अन्त करने और पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञाको दुहरायेगे । हमारी आजादीकी लड़ाई आज जिस मंजिलमे पहुंच चुकी है उसे देखते हुए, इस वातको ध्यानमे रखकर कि विधान परिषद्ने नेहरूजी द्वारा उपस्थित किये गये लक्ष्य-सम्बन्धी उस प्रस्तावको स्वीकार कर लिया है जिसमे कहा गया है कि परिषद् स्वतन्त्र भारतीय लोकतन्त्र- का विधान प्रस्तुत करेगी आवश्यकता इस वातकी थी कि इस अवसरपर हम विदेशी आधिपत्यका अन्त करनेकी प्रतिज्ञा नही वरन् उसके स्थानपर देशकी स्वाधीनताकी घोषणा करते और उसपर आक्रमण करनेवाली शक्तियोका मुकाबला करनेकी प्रतिज्ञा करते। किन्तु स्थिति यह है कि स्वाधीनता दिवसके प्रतिज्ञा-पनमे 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव सम्बन्धी जो पैराग्राफ था वह भी निकाल दिया गया है। हमारे नेताग्रोकी रायमें जव कि काग्रेस शासकोके साथ समझौतेके द्वारा स्वाधीन भारतका विधान बनाने जा रही है ऐसे अवसरपर भारत छोडोके नारेका दुहराना शिष्टाचारके विरुद्ध होगा । कितने ही नेताअोने सार्वजनिक रूपसे यह मत व्यक्त भी किया है कि ब्रिटिश शासक स्वयं भारत छोड़कर जा रहे है, इस मांगको पूरा करानेके लिए अब हमे लड़नेकी, जनक्रान्तिका मार्ग अपनानेकी आवश्यकता न होगी। १. 'समाज' ५ सितम्बर, १९४६ ई० है