पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१४३

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१३० राष्ट्रीयता और समाजवाद ब्रिटेनको परेशानियाँ मेरी रायमें परिस्थितियोका सूक्ष्म विश्लेपण करनेपर इस प्रकारकी धारणा वना लेनेके यथेप्ट प्रमाण नही मिलते कि ब्रिटिश शासक अपने साम्राज्यवादी स्वार्थीको तिलांजलि देकर स्वयमेव यहाँसे विदा हो जाना चाहते है और अव भविष्यमे उनके विरुद्ध जनसंघर्षकी तैयारी अनावश्यक हो गयी है । यह सही है कि युद्धोत्तर विश्वमें ब्रिटेनकी स्थिति बहुत निर्वल हो गयी है । ब्रिटिश नौसेनाकी शक्ति क्षीण हो चली है और नौसेनाका पुराना महत्त्व भी घट चला है। ब्रिटिश सम्राज्यके कनाडा और आस्ट्रेलिया सरीखे देश अपनी रक्षा तथा अन्य आवश्यकतायोकी पूर्तिके लिए ब्रिटेनका नही, वरन् अमेरिकाका मुंह ताकते है। ब्रिटिश साम्राज्यान्तर्गत औपनिवेशिक स्वाधीन देश अव समूचे ब्रिटिश साम्राज्यकी रक्षाका भार अपने ऊपर न लेकर केवल उस क्षेत्रको रक्षामे ही विशेप रुचि रखते है जिसमें वे स्वय अवस्थित है । परमाणु बम तथा अन्य भयानक सामरिक आविष्कारोको ध्यानमें रखकर, ब्रिटेनको अपनी सामरिक योजनायोमे परिवर्तन करने पड़ रहे है । संसारके विभिन्न देशोमे लगी हुई ब्रिटेनकी पूंजीका वड़ा भाग समाप्त हो चुका है और आज भारत तथा मिस्र सरीखे देशोका वड़ा ऋण ब्रिटेनपर चढा हुअा है । अमेरिकाके विराट् औद्योगिक विस्तार तथा पूर्वीय यूरोपके रूसी प्रभाव क्षेत्रमे चले जानेके कारण, ब्रिटेनके मालको खरीदनेवाला वाजार भी बहुत सकुचित हो गया है। ब्रिटेनके कल-कारखाने ध्वस्त हो गये है और उसकी घरेलू आर्थिक समस्याएँ गम्भीर रूप धारण कर रही है। यदि अमेरिकाका ऋण ब्रिटेनको न मिल गया होता तो उसकी अवस्था बहुत ही शोचनीय होती। यह भी सही है कि महायुद्धके परिणा रूप उपनिवेशोकी जनतामे जागरणकी जो लहर आयी है, जिस प्रकार विद्रोहकी भावना सेनातकमे जा पहुँची है और आर्थिक समस्याग्रोने जो भयंकर रूप धारण कर लिया है उसे देखते हुए उपनिवेशोमे सगीनोके वलपर अपने शासनको बनाये रखना अथवा गोरी नौकरशाहीके प्रवन्धके वलपर आर्थिक समस्यायोंको हल कर सकना ब्रिटिश शासकोकी शक्तिके वाहरकी वात है । शासकोंकी नयी योजना किन्तु अपनी सामयिक स्थितिकी निर्वलता और आर्थिक स्थितिकी गम्भीरता तथा उपनिवेशोकी वदली हुई परिस्थिति और पुराने ढगसे शासन करनेकी असमर्थताको देखते हुए भी ब्रिटिश कूटनीतिज्ञ हिम्मत नही हार वैठे है । परिवर्तित परिस्थितियोमें किस प्रकार अपने साम्राज्यवादी स्वार्थीको अधिकसे अधिक सुरक्षित रखा जा सकता है वे बड़ी कुशलताके साथ इसके लिए अपनी योजनाएँ बना रहे हैं । दिन-प्रतिदिनके शासनका भार वे उपनिवेशोके राजनीतिक दलोको सौप देनेके लिए तैयार है किन्तु आज उपनिवेशोमें ब्रिटिश पूंजी तथा तैयार मालके लिए दूसरे देशोकी अपेक्षा जो विशेष सुविधाएँ उन्हे प्राप्त है उनका परित्याग करनेके लिए तैयार नही है। जबतक किसी देशको अपनी इच्छाके अनुसार अपना आर्थिक विकास करने तथा अपनी वैदेशिक नीति और रक्षा-नीतिको