पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१५४

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लोकतन्त्रको स्थापनाका मार्ग १४१ उत्पन्न कर देता । उसे न केवल आर्थिक प्रगति और सामाजिक कल्याणका वादा करना है, बल्कि सामाजिक उन्नतिका प्रत्यक्ष प्रमाण भी देना है। ऐसी अवस्थामे ही लोग सभी आपत्तियोका सामना करेगे । सोवियत रूसका उदाहरण हमारे सामने है। लेनिनकी प्रेरणासे राज्यद्वारा जारी किये गये कानूनोने देशमे एक ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति पैदा कर दी थी जिससे श्रमिकोमे नया जीवन आ गया और वे अनुभव करने लगे कि उन्हें अपने राज्य-निर्माण का कार्य पूरा करना है। सोवियत जनताने उज्वल भविष्यकी आशामे हर तरहके कष्टोको प्रसन्नतापूर्वक सहन किया । अगर हम जनताको संघटित करना चाहते है और एक नये जीवनका आधार तयार करनेमे उसका सहयोग प्राप्त करना चाहते है, तो हमे रूसी उदाहरणका अनुकरण करना होगा। इस राष्ट्रीय कार्यमे सामाजिक दृष्टिसे दलित वर्गोका हार्दिक सहयोग प्राप्त होगा और उनकी सामूहिक शक्तिका तभी सदुपयोग हो सकता है जव कि हम उन्हे यह अनुभव करा देगे कि आजका सामाजिक भेदभाव शीघ्र ही समाप्त हो जायगा। हमारे देशमे जनताकी शक्तिका एक ऐसा विशाल स्रोत है जिसका अधिक उपयोग नही किया गया है और इसमे तभी सफलता मिल सकती है जबकि हम बुद्धिमत्तापूर्वक और सहानुभूतिके साथ इसका इस्तेमाल करेंगे। हमे जनतामे यह विश्वास उत्पन्न कर देना है कि राज्य उनकी मान्य महत्ताको स्वीकार करता है और शासन-व्यवस्थाके वे स्वय एक मुख्य अवयव है । हमे यह भी स्मरण रखना है कि वर्तमान युगमे व्यक्तिको आर्थिक उन्नति करनेके लिए समान अवसर दिये जानेपर विशेष जोर दिया जाय । जहाँ विभिन्न वर्गोमे पायी जानेवाली विषमता, आर्थिक विषमता, बहुत अधिक है, सुखमय जीवन सम्भव नही । इसलिए सामाजिक विषमताकी समाप्ति लोकतान्त्रिक व्यवस्थाके विकासके लिए अत्यन्त आवश्यक है । यह बिलकुल स्पष्ट है कि यदि हिन्दू-राज्यका नारा कार्यान्वित किया गया तो लोकतन्त्र मुरझा जायगा और हमारी सामाजिक व्यवस्थाके वर्तमान दोष स्थायी बन जायँगे । अनुदार और प्रतिक्रियावादी शक्तियोका जोर पुन. बढ़ जायगा और हिन्दू धर्मके नामपर इस वातकी पूरी कोशिश की जायगी कि लोकतन्त्रीय आदर्शोका आर्थिक क्षेत्रमे विकास न हो सके। पुरानी पद्धतियोको पुनर्जीवित करनेकी चेष्टा घातक ही सिद्ध हो सकती है, पर नया सामाजिक दृष्टिकोण, जिसके विकासको हमलोग चेष्टा करते रहे है और जिसके द्वारा ही जन-शक्तिकी एक नयी दिशा प्रदान की जा सकती है, उस प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोणद्वारा दवा दिया जायगा जो भविष्यके विरुद्ध भूतकालीन व्यवस्थाका पोषक है। हमे उन नये सामाजिक और सास्कृतिक आदर्शोकी रक्षा करनी है जिनका निर्माण जनताके इतने कष्ट सहनके बाद हो सका। गत दो पीढियोकी शिक्षाको व्यर्थ नही जाने देना चाहिये । इस बीच हिटलरके सकीर्ण राष्ट्रवादके विरुद्ध हमें मेजिनीके व्यापक